यूपी का सच : किराने की दुकानों से ली दवाएं
लखनऊ: यूपी में स्वास्थ्य मिशन में हुए घोटाले में सीबीआई जल्द ही एफआईआर दर्ज करने वाली है। इसमें कई बड़े लोगों से पूछताछ की जा सकती है।
बता दें कि यूपी का ये घोटाला ख़ूनी घोटाला साबित हुआ है। इसमें तीन लोग डेपुटी सीएमओ वाइएस सचान और दो और सीएमओ की अब तक हत्या की जा चुकी है।
अब सीबीआई के पास इस बात के सबूत हैं कि राष्ट्रीय ग्रामीण हेल्थ मिशन के इस घपले में बड़े अफ़सर और मंत्री शामिल रहे हैं। इनमें से कुछ को इस महीने गिरफ्तार किया जा सकता है। सीबीआई ने इस मामले में पांच पीई यानी प्रिलिमिनरी इन्क्वायरी दर्ज की हैं। और अब वह दो मामलों में एफआईआर दर्ज करने जा रही है। इनमें एक मामला 779 एंबुलेंसों की ख़रीद का है और दूसरा दवाओं की ख़रीद का है।
सीबीआई को जांच में पता चला कि जिन जगहों से दवा खरीदी गई वहां कोई कंपनी है ही नहीं। बजाय इसके कई जगहों पर दवा कंपनी की बजाय परचून की दुकानें हैं।
गौरतलब है कि सीबीआई कई सवालों के जवाब खोजने में जुटी है। इनमें 779 एंबुलेंसों की ख़रीद के फ़ैसले में कौन शामिल था। इनमें से 620 एंबुलेंस अरसे तक एक गोदाम में क्यों पड़ी रहीं। इन्हें 3 अलग−अलग दामों पर क्यों ख़रीदा गया। एक साल पहले प्रोजेक्ट लागू करने वाली कंपनियों को 244 करोड़ का पेमेंट कैसे हुआ और ओपन टेंडर सिस्टम क्यों अपनाया गया।
इस मामले में उत्तर प्रदेश के दो कैबिनेट मंत्रियों बाबू सिंह कुशवाहा और अनंत मिश्रा से पूछताछ हो चुकी है और उनसे दोबारा पूछताछ होगी।
उत्तर प्रदेश में जल्द ही विधान सभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में इस मामले होने वाली गिरफ्तारियां उत्तर प्रदेश में एक बड़ा चुनावी मुददा बन सकती हैं।
बता दें कि यूपी का ये घोटाला ख़ूनी घोटाला साबित हुआ है। इसमें तीन लोग डेपुटी सीएमओ वाइएस सचान और दो और सीएमओ की अब तक हत्या की जा चुकी है।
अब सीबीआई के पास इस बात के सबूत हैं कि राष्ट्रीय ग्रामीण हेल्थ मिशन के इस घपले में बड़े अफ़सर और मंत्री शामिल रहे हैं। इनमें से कुछ को इस महीने गिरफ्तार किया जा सकता है। सीबीआई ने इस मामले में पांच पीई यानी प्रिलिमिनरी इन्क्वायरी दर्ज की हैं। और अब वह दो मामलों में एफआईआर दर्ज करने जा रही है। इनमें एक मामला 779 एंबुलेंसों की ख़रीद का है और दूसरा दवाओं की ख़रीद का है।
सीबीआई को जांच में पता चला कि जिन जगहों से दवा खरीदी गई वहां कोई कंपनी है ही नहीं। बजाय इसके कई जगहों पर दवा कंपनी की बजाय परचून की दुकानें हैं।
गौरतलब है कि सीबीआई कई सवालों के जवाब खोजने में जुटी है। इनमें 779 एंबुलेंसों की ख़रीद के फ़ैसले में कौन शामिल था। इनमें से 620 एंबुलेंस अरसे तक एक गोदाम में क्यों पड़ी रहीं। इन्हें 3 अलग−अलग दामों पर क्यों ख़रीदा गया। एक साल पहले प्रोजेक्ट लागू करने वाली कंपनियों को 244 करोड़ का पेमेंट कैसे हुआ और ओपन टेंडर सिस्टम क्यों अपनाया गया।
इस मामले में उत्तर प्रदेश के दो कैबिनेट मंत्रियों बाबू सिंह कुशवाहा और अनंत मिश्रा से पूछताछ हो चुकी है और उनसे दोबारा पूछताछ होगी।
उत्तर प्रदेश में जल्द ही विधान सभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में इस मामले होने वाली गिरफ्तारियां उत्तर प्रदेश में एक बड़ा चुनावी मुददा बन सकती हैं।
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