‘मंदी की मार से चीन भी नही रहा अछूता’?
नई दिल्ली।। दुनिया को मंदी और उसके असर के बाहर आने की तमाम कोशिशों को बड़ा झटका लगा है। स्लोडाउन के चक्रव्यूह में फंसे यूरोप को बाद अब चीन में मंदी के बादल गहराते दिख रहे हैं। चीन से जारी हुए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वहां पिछले 3 महीनों (क्वॉर्टर) में अर्थव्यवस्था की विकास दर पिछले 2 सालों में सबसे कम रही है। यह न सिर्फ चीन और यूरोप बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता की बात है। भारत भी इसके असर से बच नहीं सकता। चीन से जारी हुए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वहां पिछले 3 महीनों में अर्थव्यवस्था की विकास दर पिछले 2 सालों में सबसे कम रही है। 2010 में चीन की विकास दर 10.3 रही थी, जबकि इस तिमाही जीडीपी का ग्रोथ रेट 8.9 % रहा है। पिछली तिमाही में यह 9.1 फ़ीसदी था। विशेषज्ञों के मुताबिक, इस साल विकास दर और कम होने की आशंका है। गौरतलब है कि चीन दुनिया की दूसरे सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जो काफी तेजी से बढ़ती आई है। हालांकि, चीनी सरकार अब चाहती है कि विकास दर भले ही थोड़ी कम तेजी से बढ़े पर टिकाऊ हो। इसी लक्ष्य को लेकर चीन सरकार ने लोगों को कर्ज देने में कमी कर दी है, ताकि प्रॉपर्टी और इन्वेस्टमेंट मार्केट में जरूरत से ज्यादा उछाल न आए। चीन की इकॉनमी धीमी होने का एक कारण एक्सपोर्ट में कमी भी बताई जा रही है। एक्सपोर्ट में कमी का मुख्य कारण है यूरोप और अमरीका में मांग में कमी का आना। एक और खास बात भारत की तरह चीन में भी सरकार के सामने विकास दर के साथ-साथ महंगाई एक बड़ी समस्या के रूप में खड़ी है। कुछ दिन पहले ही रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स (एसऐंडपी) ने फ्रांस, इटली और स्पेन समेत 9 यूरोपीय देशों की क्रेडिट रेटिंग घटा दी थी। फ्रांस की रेटिंग ट्रिपल ए से घटाकर एए प्लस कर दी गई है। इनके अलावा जिन यूरोपीय देशों की रेटिंग कम की गई है, वे हैं साइप्रस, पुर्तगाल, माल्टा, स्लोवेनिया, स्लोवाकिया और ऑस्ट्रिया। अब जर्मनी इकलौता यूरोपीय देश है, जो एएए की टॉप क्रेडिट रेटिंग बचा पाने में कामयाब रहा है। भारत के आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक, इन यूरोपीय देशों की रेटिंग कम होने का असर भारतीय मार्केट और अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है। सबसे अहम बात है कि डॉलर फिर से तेजी पकड़ सकता है। ऐसा हुआ तो भारत सहित अन्य विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था का संतुलन बिगड़ जाएगा।
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