'भारत-चीन के बीच समझोते से अमेरिका परेशान'
नई दिल्ली. भारत और चीन ने दोनों देशों के बीच विवादित सीमा पर शांति कायम करने के लिए सीमा तंत्र की एक रूपरेखा पर मंगलवार को हस्ताक्षर किए। इस रूपरेखा के तहत भारत-चीन सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से लगे क्षेत्र में घुसपैठ की शिकायत मिलने पर दोनों देशों के विदेश कार्यालय एक-दूसरे से संपर्क करेंगे। समझौते के मुताबिक, ‘भारत-चीन सीमा क्षेत्र में शांति और सौहार्द बनाने से जुड़े प्रमुख सीमा मामलों को सुलझाने के लिए दोनों पक्ष एक कार्यकारी तंत्र की स्थापना करने पर सहमत हुए। यह तंत्र दोनों देशों के बीच परामर्श और सहयोग की सुविधा उपलब्ध कराएगा।' लेकिन भारत-चीन के बीच सीमा विवाद पर हुआ समझौता अमेरिका की आंखों में खटक रहा है। अमेरिकी मीडिया के एक तबके का मानना है कि इससे सीमा विवाद के समाधान में मदद नहीं मिलेगी। ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ में कहा गया है कि भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर 1962 में जंग हो चुकी है। चीन इस जंग में विजेता रहा और अब तक किसी पक्ष ने चार हजार किलोमीटर लंबी सीमा को मान्यता नहीं दी जिसे एलएसी कहा जाता है। अखबार आगे कहता है कि दोनों देशों के बीच सीमा वार्ता 1981 में शुरू हुई थी लेकिन अब तक इसमें बहुत कम प्रगति हुई है। गौरतलब है कि सीमा वार्ता के विशेष प्रतिनिधियों चीन के स्टेट काउंसलर दाई बिंगगुगो और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने अपनी दो दिनों की वार्ता सोमवार से शुरू की। नक्शे पर सीमांकन की रूपरेखा तैयार करने के लिए यह वार्ता पिछले साल नवंबर में होनी थी लेकिन तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा पर चीन की आपत्ति पर प्रस्तावित वार्ता स्थगित कर दी गई
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