गुवाहाटी / नई दिल्ली: प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी असम के हिंसाग्रस्त जिले कोकराझार में स्थिति का जायजा लेने के लिए शनिवार को गुवाहाटी पहुंचे। प्रधानमंत्री व सोनिया गुवाहाटी पहुंचने के तुरंत बाद कोकराझार के लिए रवाना हो गए, लेकिन खराब मौसम के कारण उन्हें ले जा रहे हेलीकॉप्टर को वापस गुवाहाटी लौटना पड़ा।
मनमोहन और सोनिया गांधी कोकराझार में बेघर हुए लोगों के लिए बनाए गए शरणार्थी शिविरों का जायजा लेंगे। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई से नाराज हैं, क्योंकि वह हिंसा पर ठीक तरह से काबू नहीं पा सके।
हालांकि राज्य में हालात अब धीरे−धीरे सामान्य हो रहे हैं, लेकिन इस हिंसा ने 45 लोगों की जिंदगी छीन ली और तकरीबन चार लाख लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े हैं। हजारों लोग राहत शिविरों में खौफ के साये में रह रहे हैं।
असम के मौजूदा जातीय संघर्ष में एक ओर बोडो आदिवासी हैं, तो दूसरी ओर सीमापार से आकर बसे गैर-बोडो प्रवासी। प्रवासियों की बढ़ती तादाद का बोडो समुदाय के लोग विरोध कर रहे हैं। उधर, बोडो शरणार्थी भी बड़ी संख्या में कैंपो में पहुंच गए हैं। जब हिंसा भड़की, तो घर छोड़ते समय लोगों को कुछ साथ लाने का भी वक्त नहीं मिला, इसलिए कोकराझार के टीटागुड़ी कैंप में अब इन्हें मदद पहुंचाई जा रही है। वहीं पीड़ितों की मानें, तो सरकार को हालात बिगड़ने का अंदेशा था, फिर भी कार्रवाई में देरी हुई। हालात इतने खराब होने की वजह से जब मुख्यमंत्री तरुण गोगोई निशाने पर आए, तो उन्होंने पल्ला झाड़ना शुरू कर दिया।
गोगोई का कहना है कि उन्होंने केंद्र से फोर्स की मांग की थी, लेकिन केंद्र सरकार ने देरी की, यानी उन्होंने एक तरह से जिम्मेदारी केंद्र के पाले में डाल दी है। अब सामने आ रहा है कि असम सरकार ने फौज से 23 जुलाई को हिंसा वाले इलाकों में जाने के लिए कहा, लेकिन फौज ने कहा कि पहले मुख्यालय से हरी झंडी मिल जाए। इसके बाद राज्य के मुख्य सचिव ने गृहमंत्रालय से दखल देने को कहा। गृह सचिव ने रक्षा सचिव से बात की, तब जाकर 25 जुलाई को सेना पहुंची। तब तक काफी देर हो चुकी थी।
मनमोहन और सोनिया गांधी कोकराझार में बेघर हुए लोगों के लिए बनाए गए शरणार्थी शिविरों का जायजा लेंगे। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई से नाराज हैं, क्योंकि वह हिंसा पर ठीक तरह से काबू नहीं पा सके।
हालांकि राज्य में हालात अब धीरे−धीरे सामान्य हो रहे हैं, लेकिन इस हिंसा ने 45 लोगों की जिंदगी छीन ली और तकरीबन चार लाख लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े हैं। हजारों लोग राहत शिविरों में खौफ के साये में रह रहे हैं।
असम के मौजूदा जातीय संघर्ष में एक ओर बोडो आदिवासी हैं, तो दूसरी ओर सीमापार से आकर बसे गैर-बोडो प्रवासी। प्रवासियों की बढ़ती तादाद का बोडो समुदाय के लोग विरोध कर रहे हैं। उधर, बोडो शरणार्थी भी बड़ी संख्या में कैंपो में पहुंच गए हैं। जब हिंसा भड़की, तो घर छोड़ते समय लोगों को कुछ साथ लाने का भी वक्त नहीं मिला, इसलिए कोकराझार के टीटागुड़ी कैंप में अब इन्हें मदद पहुंचाई जा रही है। वहीं पीड़ितों की मानें, तो सरकार को हालात बिगड़ने का अंदेशा था, फिर भी कार्रवाई में देरी हुई। हालात इतने खराब होने की वजह से जब मुख्यमंत्री तरुण गोगोई निशाने पर आए, तो उन्होंने पल्ला झाड़ना शुरू कर दिया।
गोगोई का कहना है कि उन्होंने केंद्र से फोर्स की मांग की थी, लेकिन केंद्र सरकार ने देरी की, यानी उन्होंने एक तरह से जिम्मेदारी केंद्र के पाले में डाल दी है। अब सामने आ रहा है कि असम सरकार ने फौज से 23 जुलाई को हिंसा वाले इलाकों में जाने के लिए कहा, लेकिन फौज ने कहा कि पहले मुख्यालय से हरी झंडी मिल जाए। इसके बाद राज्य के मुख्य सचिव ने गृहमंत्रालय से दखल देने को कहा। गृह सचिव ने रक्षा सचिव से बात की, तब जाकर 25 जुलाई को सेना पहुंची। तब तक काफी देर हो चुकी थी।
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