बढती महंगाई ने तोडी आम आदमी की कमर : सरकार भी असहाय
मानसून की नाराजगी के चलते देश सूखे के कगार पर
पहुंच चुका है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक
और राजस्थान में बहुत ही कम बारिश हुई है। इन राज्यों में खेती का काम बिलकुल ठप
है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी
कमोबेश यही हालात हैं। खाद्यान्न
और सब्जियों के दामों में तेजी के चलते निकट भविष्य में महंगाई से निजात संभव
नहीं है। ऐसे में पेट्रोल के दाम में सोमवार को की गई 70 से 90 पैसे तक की
वृद्घि ने आम आदमी को मुश्किल में डाल दिया है। कमोडिटी
बाजार में अनाज, दाल, तिलहन
आदि की कीमतों में तेज आ गई है। बीते दो माह में अधिकांश जिंसों की कीमतों में 20
से लेकर 52 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो चुकी
है। हालत यह है कि देश में गेहूं का विशाल भंडार होने के बावजूद इसकी कीमतों में
भी बीते दो माह में करीब 30 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है।
बारिश की कमी से सब्जियों की कीमतों में लगातार उछाल हो रहा है। अनाज के भाव भी महंगाई में पीछे नहीं हैं, जिससे किचन के बजट में बेतहाशा बढ़ोतरी हो गई है। कारोबारी सूत्रों के अनुसार, बीते दो माह में औसत गेहूं का भाव 1,156 रुपये प्रति क्विंटल से 30 फीसदी बढ़कर 1,470 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। चने का भाव 4,090 रुपये प्रति क्विंटल से 20 फीसदी बढ़कर 4,900 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। चीनी का भाव 2 महीने में ही 2,810 रुपये प्रति क्विंटल से 20 फीसदी बढ़कर 3,400 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। दो महीने में सोयाबीन 3,333 रुपये प्रति क्विंटल से 52 फीसदी बढ़कर 5,065 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। सरसों का भाव 3,740 रुपये प्रति क्विंटल से 18 फीसदी बढ़कर 4,440 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। दो महीने में मक्के का भाव 1,090 रुपये प्रति क्विंटल से 50 फीसदी बढ़कर 1,640 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है।
बाजार में तेजी के लिए मानसून की कमजोरी के साथ अंतरराष्ट्रीय कारण भी जिम्मेदार हैं। ग्लोबल स्तर पर मौसम किसानों के साथ नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार अमेरिका और रूस में शुष्क व गर्म मौसम के चलते जुलाई के पहले 3 हफ्ते के दौरान गेहूं की ग्लोबल कीमतें 21 फीसदी बढ़कर 347 डॉलर प्रति टन हो गई हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की बढ़ती कीमतों का लाभ भारत को होगा। अमेरिका में मक्के के औसत भाव रिकॉर्ड 322 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गए हैं। काला सागर क्षेत्र खासकर रूस में गेहूं की बुवाई में कमी आई है। अमेरिका में मक्के की कीमतों में मजबूती का दबाव गेहूं की कीमतों पर पड़ रहा है।
बारिश की कमी से सब्जियों की कीमतों में लगातार उछाल हो रहा है। अनाज के भाव भी महंगाई में पीछे नहीं हैं, जिससे किचन के बजट में बेतहाशा बढ़ोतरी हो गई है। कारोबारी सूत्रों के अनुसार, बीते दो माह में औसत गेहूं का भाव 1,156 रुपये प्रति क्विंटल से 30 फीसदी बढ़कर 1,470 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। चने का भाव 4,090 रुपये प्रति क्विंटल से 20 फीसदी बढ़कर 4,900 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। चीनी का भाव 2 महीने में ही 2,810 रुपये प्रति क्विंटल से 20 फीसदी बढ़कर 3,400 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। दो महीने में सोयाबीन 3,333 रुपये प्रति क्विंटल से 52 फीसदी बढ़कर 5,065 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। सरसों का भाव 3,740 रुपये प्रति क्विंटल से 18 फीसदी बढ़कर 4,440 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। दो महीने में मक्के का भाव 1,090 रुपये प्रति क्विंटल से 50 फीसदी बढ़कर 1,640 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है।
बाजार में तेजी के लिए मानसून की कमजोरी के साथ अंतरराष्ट्रीय कारण भी जिम्मेदार हैं। ग्लोबल स्तर पर मौसम किसानों के साथ नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार अमेरिका और रूस में शुष्क व गर्म मौसम के चलते जुलाई के पहले 3 हफ्ते के दौरान गेहूं की ग्लोबल कीमतें 21 फीसदी बढ़कर 347 डॉलर प्रति टन हो गई हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की बढ़ती कीमतों का लाभ भारत को होगा। अमेरिका में मक्के के औसत भाव रिकॉर्ड 322 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गए हैं। काला सागर क्षेत्र खासकर रूस में गेहूं की बुवाई में कमी आई है। अमेरिका में मक्के की कीमतों में मजबूती का दबाव गेहूं की कीमतों पर पड़ रहा है।
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