Monday, July 23, 2012


'रायसीना में नई जिम्मेदारिया कर रही है दादा का वेट'
नई दिल्ली- देश के नए राष्ट्रपति के तौर पर रायसीना हिल्स पहुंच रहे प्रणब मुखर्जी को कामकाज की टेबल खाली नहीं मिलेगी। एक दर्जन से अधिक दया याचिकाएं और कई विधेयक जहां उन्हें विरासत में मिलेंगे। वहीं कुछ मामले संवैधानिक दायित्व पद संभालने के कुछ ही दिनों के भीतर उन्हें निपटाने होंगे। राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद संवैधानिक कर्तव्य के तौर पर सबसे पहला काम उनके आगे मनमोहन सरकार के मंत्रिमंडल में फेरबदल पर मुहर का आ सकता है। इसकी जरूरत प्रणब मुखर्जी के वित्त मंत्रालय छोड़कर राष्ट्रपति चुनाव मैदान में आने से उपजी। अटकलें हैं कि अगले माह से शुरू होने वाले संसद के मानसून सत्र से पहले ही यह मौका आ सकता है। इसके अलावा अपने पूर्ववर्ती के कार्यकाल में अधूरी पड़ी 16 दया याचिकाएं भी मुखर्जी की मेज पर होंगी। जिनमें संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु का मामला भी शामिल है। राजग कुनबे से बाहर जाकर प्रणब मुखर्जी के पक्ष में मतदान करने वाली शिवसेना के मुखिया बाल ठाकरे ने अफजल पर निर्णायक फैसले की अपेक्षा जता दी थी। राज्य और केंद्र सरकार के कई विधेयक भी मंजूरी की कतार में नए राष्ट्रपति के तौर पर प्रणब मुखर्जी का इंतजार कर रहे होंगे। आंकड़े बताते हैं कि राष्ट्रपति के पास सौ से अधिक विधेयक विभिन्न राज्य सरकारों के ही लंबित हैं। इसके अलावा बीते कुछ समय में राष्ट्रपति भवन पहुंचे केंद्र सरकार के भी कुछ विधेयकों पर दस्तखत कर अब मुखर्जी को ही लौटाना होगा।
यह संयोग ही है कि देश की तीनों सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर का पद संभालने जा रहे प्रणब मुखर्जी इससे पहले 2004-2006 तक रक्षामंत्री का पद भी संभाल चुके हैं। ऐसे में यह अपेक्षाएं लाजिमी हैं कि रक्षा सेनाओं में भ्रष्टाचार के कुछ मामलों को लेकर छवि की समस्याओं को भी वो दुरुस्त करने का प्रयास करें। संप्रग सरकार में ही प्रणब रक्षा, विदेश और वित्त मंत्रालयों की जिम्मेदारी बीते आठ सालों में संभाल चुके हैं। अब उनका अधिकतर वास्ता गृह मंत्रालय से पड़ेगा।
  

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