Thursday, February 28, 2013

ग्रामीण विकास मंत्रालय को अगले वित्त वर्ष में 80,194 करोड़ रूपए की राशि

 ग्रामीण विकास मंत्रालय को अगले वित्त वर्ष में 80,194 करोड़ रूपए की राशि 
 ग्रामीण विकास मंत्रालय को अगले वित्त वर्ष में 80,194 करोड़ रूपए की राशि दी जाएगी। आज लोकसभा में अगले वित्त वर्ष 2013-14 के लिए आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री पी चिदम्बरम ने कहा कि फ्लैगशिप कार्यक्रमों पर मंत्रालय द्वारा चालू वर्ष में 55,000 करोड़ रूपए की राशि खर्च करने का अनुमान है। उन्होंने कहा कि अगले वित्त वर्ष के लिए मंत्रालय को मेरा 80,194 करोड़ रूपए देने का प्रस्ताव है, जो पिछले वर्ष से 46 प्रतिशत अधिक है। मनरेगा के लिए 33,000 करोड़ रूपए, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के लिए 21,700 करोड़ रूपए और इंदिरा आवास कार्यक्रम के लिए 15,184 करोड़ रूपए होंगे। श्री चिदम्बरम ने कहा कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना को कई राज्यों में काफी हद तक पूरा कर लिया गया है। इसलिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना-2 शुरू की जाएगी, जिसके लिए कुछ राशि रखी जा रही है। इस नए कार्यक्रम से आंध्र प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों को लाभ होगा। इस कार्यक्रम का विस्तृत ब्यौरा ग्रामीण विकास मंत्री उचित समय पर देंगे। वित्त मंत्री ने पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के लिए 15,260 करोड़ रूपए आबंटित करने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि देश में आर्सेनिक के जल-प्रदूषण वाली 2000 और फ्लोराइड के जल-प्रदूषण वाली 12000 ग्रामीण बस्तियां हैं। इनके पानी की सफाई के संयंत्र लगाने के लिए उन्होंने 1400 करोड़ रूपए के आबंटन का प्रस्ताव रखा। वित्त मंत्री ने कहा कि जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन 12वीं योजना में भी जारी रहेगा। वर्ष 2009 से 2012 तक शहरी परिवहन में योगदान के लिए 14,000 बसें दी गई थी। उन्होंने इस मिशन के वास्ते अगले वित्त वर्षमें 14,873 करोड़ रूपए देने का प्रस्ताव रखा। चालू वर्ष के संशोधित अनुमान में यह राशि 7,383 करोड़ रूपए थी। इस राशि का अधिकतर हिस्सा 10,000 बसों की खरीद के लिए, विशेष रूप से पहाड़ी राज्यों द्वारा खर्च किया जाएगावित्‍त मंत्री पी. चिदबंरम ने आज संसद में वर्ष 2013-14 का आम बजट पेश करते हुए बताया कि अनेक महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम लागू करने वाले ग्रामीण विकास मंत्रालय के बजटीय आवंटन में भारी बढ़ोतरी की गई है। अपने बजट भाषण में वित्‍त मंत्री ने यह घोषणा की कि मंत्रालय को 2013-14 में 80,194 करोड़ रुपये दिये जाएंगे जबकि 2012-13 में 55 हजार करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे। इस प्रकार आवंटन में 46 प्रतिशत की वृद्धि की गई है। महात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ‘मनरेगा’ को 33 हजार करोड़ रुपये, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना को 21,700 करोड़ रुपये तथा इंदिरा आवास योजना (आईएवाई) को 15,184 करोड़ रुपये प्रदान किये जाएंगे।
वित्‍त मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के उद्देश्‍य अनेक राज्‍यों में व्‍यापक रूप से पूरे कर लिए गये हैं और ये राज्‍य इस बारे में और कार्य करने के इच्‍छुक हैं, इसलिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना-2 शुरू करने और नये कार्यक्रम को धन का एक हिस्‍सा आवंटित करने का प्रस्‍ताव है। इससे आंध्र प्रदेश, हरियाण, कर्नाटक, महाराष्‍ट्र, पंजाब और राजस्‍थान जैसे राज्‍यों को फायदा होगा।
इसी प्रकार पेय जल और स्‍वच्‍छता मंत्रालय को चालू वर्ष के दौरान 15,260 करोड़ रुपये दिये जाएंगे जबकि संशोधित अनुमान 13 हजार करोड़ रुपये का था। उन्‍होंने जल शुद्ध करने के सयंत्रों की स्‍थापन करने के‍लिए 1400 करोड़ रुपये उपलब्‍ध कराने का भी प्रस्‍ताव किया है क्योंकि देश में अभी भी 2000 आर्सिनिक और 12 हजार फ्लोराइड से प्रभावित ग्रामीण बस्तियां मौजूद हैं।

 

Monday, February 11, 2013

NAC on Enhancing Farm Income for Small Holders



The  National Advisory Council meeting was held under the chairmanship of  by Smt. Sonia Gandhi last week of Jan 2013. Members who attended the meeting were Ms Anu Aga, Dr. Mihir Shah,  Smt. 
Aruna Roy,  Shri Ashis Mondal, Ms Mirai Chatterjee, Ms Farah Naqvi, Shri Deep Joshi and Dr A.K. Shiva Kumar. Ashis Mondal, Member, NAC and Convener of the NAC Working Group on  Enhancing Farm Income for Small Holders through Market Integration presented the draft recommendations of the Working Group to the Council. It was highlighted that building “collectives of smallholders” or farmer producer organizations will address many of the  output issues (markets, value addition, post-harvest activities etc.) and input issues (extension, credit, plant protection,insurance, nutrients) which will have positive impact on the productivity and risk mitigation directly.  The  overall direction of the recommendations is to create a policy environment that enables small and marginal farmers (SMF) to build their collectives and grow as vibrant institutions and play an effective role  in the market in more equitable terms. 
4. The recommendations were under four broad categories : 
a. Institution building initiatives for smallholders
b. Financial services to smallholders’ institutions
c. Marketing of smallholders’ produce, inputs supply, services, etc., and  
d. General Recommendation  
5. The key recommendations being (a)  Grant support to promote FPOs as the 
platform for aggregation for market, financing & extension by developing a sub scheme within the existing Centrally Sponsored Schemes (CSS) of Agriculture& Rural Development to promote Farmer Producer Organizations (FPOs) (b) Establish Apex central organization to support FPOs  and  address the need for promotional role (c ) Creating conducive policy regime for FPOs to access Start up and Investment capital  (d)  FPOs be included as a recognized category of institution  under the  Agricultural Produce Marketing Committees  Act and be allowed to market members’ produce directly to buyers of their choice, through all platforms (e) Producer companies should continue to be retained as a part of the proposed amended Companies Bill/Act. 

Friday, February 8, 2013

स्‍वास्‍थ्‍य सेवा की एक नई पहल -- राष्‍ट्रीय बाल स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम

स्‍वास्‍थ्‍य सेवा की एक नई पहल -- राष्‍ट्रीय बाल स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम
विश्‍वभर में प्रतिवर्ष लगभग 79 लाख ऐसे बच्‍चों का जन्‍म होता है, जो जन्‍म के समय गंभीरआनुवंशिक अथवा आंशिक तौर पर आनुवंशिक विकृतियों से पीडि़त होते हैं। ऐसे बच्‍चे जन्‍म लेने वाले कुल बच्‍चों का छह प्रतिशत हैं। भारत में प्रतिवर्ष 17 लाख ऐसे बच्‍चे जन्‍म लेते हैं, जो जन्‍मजात विकृतियों का शिकार होते हैं। यदि उनका विशेषतौर पर और समय पर निदान नहीं हो और इसके बावजूद भी वे बच जाते हैं, तो ये बीमारियां उनके लिए जीवन पर्यन्‍त मानसिक, शा‍रीरिक, श्रवण संबंधी अथवा दृष्टि संबंधी विकलांगता का कारण हो सकती हैंस्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय की ओर से हाल ही में राष्‍ट्रीय बाल स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम की शुरूआत की गई है, जिसके माध्‍यम से अधिकतम 18 वर्ष तक की उम्र के बच्‍चों के लिए स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के एक पैकेज का प्रावधान किया गया है। यह पहल राष्‍ट्रीय ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य मिशन का एक हिस्‍सा है, जिसे केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद और महाराष्‍ट्र के मुख्‍यमंत्री श्री पृथ्‍वीराज चव्‍हाण की उपस्थिति में संयुक्‍त प्रगतिशील गठबंधन की अध्‍यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा महाराष्‍ट्र के ठाणे जिले के जनजातीय बहुल ब्‍लॉक पालघर में 06 फरवरी को शुरू किया गया था। विस्‍तार चरणबद्री केसे देश के सभी जिलों तक किया जाएगा। राष्‍ट्रीय बाल स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम को बाल स्‍वास्‍थ्‍य परीक्षण और शीघ्र निदान सेवा के रूप में भी जाना जाता है, जिसका लक्ष्‍य बच्‍चों की मुख्‍य बीमारियों का शीघ्र पता लगाना और उसका निदान करना है। इन बीमारियों में जन्‍मजात विकृतियों, बाल रोग, कमियों के लक्षणों और विकलांगताओं सहित विकास संबंधी देरी शामिल हैं। स्‍कूल स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम के अधीन बच्‍चों का स्‍वास्‍थ्‍य परीक्षण एक जाना-माना कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का विस्‍तार करके इसमें जन्‍म से लेकर 18 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्‍चों को शामिल किया जा रहा है। इन सुविधाओं का लक्ष्‍य सरकारी और सरकार द्वारा सहायता प्राप्‍त स्‍कूलों में पहली कक्षा से लेकर 12वीं कक्षा तक में पंजीकृत बच्‍चों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी झुग्‍गी बस्तियों के जन्‍म से लेकर छह वर्ष की उम्र के सभी बच्‍चों को शामिल करना है। शीघ्र परीक्षण और शीघ्र निदान के लिए 30 सामान्‍य बीमारियों/स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी स्थितियों की पहचान की गई है।
     पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग 70 प्रतिशत बच्‍चों में लौह तत्‍व की कमी के कारण रक्‍ताल्‍पता पाई गई है। इस संदर्भ में पिछले दशक की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग आधे बच्‍चे (48 प्रतिशत) कुपोषण का शिकार पाए जाते हैं। स्‍कूल से पहले के वर्षों के दौरान बच्‍चे रक्‍ताल्‍पता, कुपोषण और विकासात्‍मक विकलांगताओं के प्रतिकूल प्रभावों का निरंतर सामना करते हैं, जो अंतत: स्‍कूल में उनके निष्‍पादन को भी प्रभावित करता है।विभिन्‍न सर्वेक्षणों के द्वारा इस बात का पता चला है कि भारत के स्‍कूली बच्‍चों में से 50 से 60 प्रतिशत बच्‍चे दांतों से संबंधित बीमारियों से पीडि़त होते हैं। स्‍कूली बच्‍चों में पांच वर्ष से लेकर नौ वर्षों के उम्र समूह में लगभग प्रति हजार एक दशमलव पांच बच्‍चे रूमाटिक हृदय रोग से पीडि़त होते हैं। ऐसे बच्‍चों में 4.75 प्रतिशत अस्‍थमा जैसी बीमारियां पाई जाती है। वैश्विक तौर पर गरीबी, खराब स्‍वास्‍थ्‍य, कुपोषण और शुरूआती देखरेख की कमी के कारण पांच वर्ष तक के लगभग 20 करोड़ बच्‍चे अपनी विकासात्‍मक क्षमता को प्राप्‍त नहीं कर पाते है। बचपन में शुरूआती आरंभिक देखरेख की कमी होना और पूर्णत: गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्‍या का इस्‍तेमाल पांच वर्ष से कम उम्र में अल्‍प विकास के संकेतकों के रूप में किया जा सकता है। ये दोनों संकेतक आपस में संबंधित है,‍जिनके परिणाम स्‍वरूप बच्‍चों का शैक्षिक निष्‍पादन और विकासात्‍मक क्षमता प्रभावित होती है मान्‍यताप्राप्‍त सामाजिक स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता(आशा) नवजात शिशु के जन्‍म के दौरान घरों और संस्‍थात्‍मक दौरे के दौरान शिशुओ की जांच घर पर और 6 हफ्ते की सीमा तक की जाती है। आशा को जन्‍मजात विकारों को दूर करने के लिए आसान उपकरणों से प्रशिक्षित किया जाता है। आशा को जन्‍मजात विकारों की पहचान करने के लिए एक टूल-किट दी जाती है जिससे वे बीमारियों की पहचान आसानी से कर सकती हैं। 6 सप्‍ताह से लेकर 6 वर्ष तक के आयु समूह के बच्‍चों की जांच आंगनवाड़ी केन्‍द्रों में निर्धारित सचल स्‍वास्‍थ्‍य दलों द्वारा की जाती है। 6 से 18 वर्ष के बच्‍चों की जांच सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्‍त विद्यालयों में की जाती है। आंगनवाड़ी केन्‍द्रों में बच्‍चों की जांच वर्ष में कम से कम दो बार की जाती है और विद्यालय जाने वाले बच्‍चों की जांच शुरूआती स्‍तर पर वर्ष में एक बार की जाती है इस कार्यक्रम के लिए खंड गतिविधियों का केन्‍द्र होता है। कम से कम तीन निर्धारित सचल स्‍वास्‍थ्‍य दल प्रत्‍येक खंड में बच्‍चों की जांच करने के लिए सु‍निश्चित किये गये हैं। खंडों की न्‍यायिक सीमा के अंदर आने वाले गांवों को तीन दलों में वितरित किया जाता है। दलों की संख्‍या आंगनवाड़ी केन्‍द्रों की संख्‍या, केन्‍द्र तक पहुंचने में आने वाली दिक्‍कतों और विद्यालयों में बच्‍चों की संख्‍या पर निर्भर करता है। सचल स्‍वास्‍थ्‍य दल में चार सदस्‍य  दो चिकित्‍सक (आयुष) एक पुरूष और एक महिला, एक नर्स और फार्मेसिस्‍ट सम्‍मलित होते हैं। खंड कार्यक्रम प्रबंधक विद्यालयों, आंगनवाड़ी केन्‍द्रों और स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारी से परामर्श के बाद तीनों दलों के कार्यक्रमों को निर्धारित करता है। खंड स्‍वास्‍थ्‍य दलों द्वारा दौरे का पूरा ब्‍यौरा रखा जाता है। जिला अस्‍पताल में प्रारंभिक मध्‍यवर्ती केन्‍द्र स्‍थापित किया जाता है। इस केन्‍द्र का उद्देश्‍य स्‍वास्‍थ्‍य जांच के दौरान ऐसे बच्‍चे जिनमें स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी कमियां पाई गई हो को, संदर्भ सहायता प्रदान करना है। बाल रोग विशेषज्ञ, स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारी, नर्स, पेरामेडिक, सेवा प्रदान करने के लिए दल में सम्मिलित किये जाते हैं। केन्‍द्र में श्रवण, तंत्रिका संबंधी परीक्षण और व्‍यवहार संबंधी जांच के लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्‍ध कराई जाती है। बाल स्‍वास्‍थ्‍य जांच केन्‍द्रों और प्रारंभिक हस्‍तक्षेप सेवाओं में सम्मिलित कर्मियों को ध्‍यानपूर्वक प्रशिक्षण पद्धति से प्रशिक्षित किया जाता है। तकनीकी सहायता संस्‍थाओं और सहभागी केन्‍द्रों के सहयोग से मानक प्रशिक्षण पद्धति का विकास किया जाता है। महाराष्‍ट्र में केईएम अस्‍पताल, मुम्‍बई और पुणे तथा अलीयावर जंग राष्‍ट्रीय श्रवण बाधता संस्‍थान, मुंबई प्रशिक्षण देने के लिए चुने गए है।स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय ने इस कार्यक्रम की प्रभावी योजना और प्रभावी क्रियान्‍वयन के लिए एक दिशा-निर्देश बनाए है। ये दिशा-निर्देश भारत में बड़ी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं की पहचान और प्रबंधन की प्रक्रिया का विवरण देते है। प्रारंभिक मध्‍यवर्ती सेवा की यह नई शुरूआत लंबे समय में स्‍वास्‍थ्‍य सेवा ख़र्चों में कटौती कर आर्थिक रूप से लाभ प्रदान करेंगी। केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद ने कहा कि ''रोकथाम'' और समर्थित स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल राष्‍ट्रीय मानव संसाधन को प्रभावित कर बीमारियों पर होने वाले खर्च और सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य खर्च को भी कम कर सकेंगी।  पूर्ण रूप से क्रियान्वित होने पर राष्‍ट्रीय बाल-स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम से देशभर के 27 करोड़ बच्‍चों को लाभ प्राप्‍त हो सकेगा।