Tuesday, June 26, 2012

 'गरीबों को अनाज देनें मे राज्य सरकारें नही आ रही है आगे'    
गरीबों की बदहाली पर आंसू बहाने वाले ज्यादातर राज्यों की रियायती दर पर अनाज देने की योजना में जरा भी दिलचस्पी नहीं है। स्थिति यह है कि राज्य केंद्रीय पूल से अपने कोटे का महज 60 से 80 फीसदी तक ही अनाज उठा रहे हैं।  ऐसे में गरीबों के साथ आम आदमी को महंगाई से राहत देने के लिए दिए गए एक मुश्त छह महीने का कोटा और 60 लाख टन अतिरिक्त अनाज को उठाने के मामले में राज्य अब पूरी तरह खामोश हो गए हैं। हालांकि केंद्रीय खाद्य राज्यमंत्री प्रो. केवी थॉमस ने सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर मानसून के सक्रिय होने से पहले अतिरिक्त आवंटित अनाज उठाने का अनुरोध किया है। जिस पर अभी तक राज्यों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। खाद्य मंत्रालय के मुताबिक सार्वजनिक वितरण के लिए आवंटित अनाज में राज्यों की दिलचस्पी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले वर्ष राज्यों ने अपने कोटे के लगभग 80 लाख टन गेहूं और 64 लाख टन चावल नहीं उठाया था। वर्ष 2011-12 के दौरान केंद्र ने सभी योजनाओं के लिए राज्यों को 324.78 लाख टन गेहूं और 384.20 लाख टन चावल आवंटित किया था, लेकिन राज्यों ने सिर्फ 242.67 लाख टन गेहूं और 320.53 लाख टन चावल ही उठाया। जाहिर है कि राज्यों ने अपने कोटे का अधिकतम 80 फीसदी ही अनाज उठाया। मंत्रालय का कहना है कि चालू वित्त वर्ष के पहले महीने में केंद्र की ओर से 18.79 लाख टन गेहूं आवंटित किया गया, जिसमें से राज्यों ने सिर्फ 16.24 लाख टन ही उठाया। दरअसल अतिरिक्त अनाज तो दूर अपने कोटे का ही अनाज उठाने में राज्यों की दिलचस्पी नहीं है। चूंकि इस साल रबी सीजन में गेहूं की खरीद उम्मीद से भी अधिक हुई है। इससे केंद्र सरकार ने राज्यों से एक साथ छह महीने का कोटा उठाने का अनुरोध किया है। इसके साथ ही आम आदमी को जरूरत के मुताबिक अनाज उपलब्ध कराने के लिए अतिरिक्त अनाज भी आवंटित किया गया है।

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