Saturday, June 16, 2012


'प्रणव मुखर्जी का भारत के 13 वां राष्ट्रपति बनना लगभग तय'
रायसीना हिल्स का सियासी थ्रिलर आखिरकार प्रणब मुखर्जी के देश का नया राष्ट्रपति बनने की दहलीज पर पहुंचने के साथ ही क्लाइमेक्स तक पहुंच गया। ममता बनर्जी की सियासत का तख्तापलट करते हुए यूपीए ने प्रणब को राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाने का ऐलान कर दिया। सोनिया गांधी से सीधी जंग में उतरी ममता को परास्त करने के लिए कांग्रेस ने ममता-मुलायम सिंह की दोस्ती को तहस-नहस करते हुए दीदी को यूपीए में बिल्कुल अलग-थलग कर दिया।
यूपीए गठबंधन की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाने के ऐलान के साथ ही प्रणब के पक्ष में समर्थन की बयार बह निकली है। उम्मीदवारी का ऐलान होने के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं को फोन कर दादा के लिए समर्थन मांगा है। पीएम के फोन के बाद मुलायम सिंह और मायावती ने तो प्रणब का समर्थन करने की घोषणा में कुछ मिनटों में ही कर डाली। उम्मीदवारी से बेहद खुश प्रणब ने तमाम दलों से खुद भी समर्थन की अपील की है। मुखर विरोधी ममता को छोटी बहनबताते हुए दादा ने उनसे भी समर्थन मांगा। प्रणब के पक्ष में होती गोलबंदी देख पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने संकेत दिए हैं कि वह चुनाव लड़ने के हक में नहीं हैं। प्रणब के राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने के साथ ही तमाम सियासी उतार चढ़ाव के बाद यूपीए के संकटमोचककी सक्रिय राजनीति से सम्मानजनक विदाई अब निश्चित है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के विदेश से लौटने के बाद उनका राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन होगा। यूपीए के तय किए जा रहे कार्यक्रमों के अनुसार प्रणब 24 जून को वित्त मंत्री पद से इस्तीफा देंगे और 25 जून को सियासी जलसे के साथ अपना नामांकन दाखिल कर सकते हैं। अपनी उम्मीदारी को स्वीकार करते हुए प्रणब ने कांग्रेस पार्टी और अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ तमाम सहयोगी दलों और अन्य पार्टियों के नेताओं का आभार जताया। उधर, कोलकाता पहुंची ममता बनर्जी कलाम के नाम पर ही दम भर रही हैं, जबकि खुद कलाम उम्मीदवार बनने के पक्ष में नहीं है। सूत्रों का कहना है कि उन्होंने कह दिया है कि जब तक सौ प्रतिशत जीत सुनिश्चित नहीं होती वह उम्मीदवार नहीं बनेंगे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रमुख विपक्षी दल भाजपा की नेता सुषमा स्वराज से भी फोन पर समर्थन मांगा है। वामपंथी दलों ने भी प्रणब को लेकर अभी तक सकरात्मक संकेत ही दिए हैं। अब केवल पीए संगमा ही अन्नाद्रमुक और बीजेडी के समर्थन और एनडीए की उम्मीद पर प्रणब मुखर्जी के खिलाफ ताल ठोकने का दम लगा रहे हैं।

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