Monday, August 6, 2012

आज मंगल पर लैंड करेगा नासा का मार्स रोवर-क्यूरियोसिटी

curiosity न्यू यॉर्क।। नासा का मार्स रोवर- क्यूरियोसिटी आज मंगल पर लैंड करेगा। भारतीय समय के अनुसार यह सुबह करीब 11 बजे मंगल की धरती को छुएगा। इससे मिले आंकड़ों से तय होगा कि क्या मंगल पर जीवन की कोई संभावना है या नहीं।
क्या खास है क्यूरियोसिटी में: 6 पहियों वाले क्यूरियोसिटी का वजन 900 किलो है। ऊंचाई 3 मीटर, स्पीड औसतन 30 मीटर प्रति घंटा। यह रोवर मंगल पर 2 साल काम करेगा। इस दौरान कम से कम 19 किलोमीटर की दूरी तय करेगा। यह रोवर नासा ने 26 नवंबर 2011 को केप कैनेवरल स्पेस स्टेशन से एटलस-5 नामक रॉकेट से लॉन्च किया था। रोवर मंगल पर रेडियोआइसोटॉप जेनरेटर से मिलने वाली बिजली से चलेगा। ईंधन के रूप में प्लूटोनियम-238 का इस्तेमाल होगा।  इस मिशन में मंगल के मौसम, वातावरण और भूगोल की जांच होगी। इनसे मिले आंकड़ों से तय होगा कि क्या मंगल पर जीवन की कोई संभावना है।
मंगल पर लैंडिंग मुश्किल भरी होगी। वहां का वातावरण पैराशूट वगैरह के इस्तेमाल के लिए काफी हल्का है। इसलिए वहां सिर्फ पैराशूट के सहारे सेफ तरीके से नहीं लैंडिंग नहीं कराई जा सकती। चूंकि क्यूरियोसिटी का वजन ज्यादा है इसलिए उसे पहले इस्तेमाल किए जा चुके एयरबैग कुशन वगैरह के इस्तेमाल से भी लैंड कराना ठीक नहीं होगा। नासा ने लैंडिंग को चार स्टेप्स में तोड़ा है। इसमें आखिर में एक स्काई क्रेन की मदद से क्यूरियोसिटी को मंगल की सतह पर उतारा जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया में 7 मिनट लगेंगे।
 नासा साइंटिस्टों और इंजिनियरों में कई भारतीय मूल के हैं। यही नहीं, रोवर में लगाए गए एक माइक्रोचिप पर 59,041 भारतीयों के नाम भी दर्ज हैं। असल में नासा ने पूरी दुनिया से लोगों को मिशन में हिस्सेदारी करने के लिए इनवाइट किया था। इस पर अमेरिका से सबसे ज्यादा 5,29,386, फिर ब्रिटेन से 77,329 नाम आए। तीसरे नंबर पर भारतीय रहे।
जून व जुलाई 2003 को नासा ने स्पिरिट और फिर ऑपरट्यूनिटी नामक मार्स रोवरों से लदे दो रॉकेटों को मंगल की ओर रवाना किया था। स्पिरिट ने शुरुआती एक वर्ष में ही गुसेव क्रेटर की पड़ताल की। इस क्रेटर के बारे में माना जाता था कि यह गड्ढा वहां पानी की झील रहने के कारण बना होगा, पर स्पिरिट ने जो आंकड़े भेजे हैं, उनसे वहां पानी की मौजूदगी का कोई प्रमाण नहीं होने की पुष्टि हुई। ऑपरट्यूनिटी को चट्टानों में हेमेटाइट नामक खनिज का पता चला, जिसे पानी की उपस्थिति का अच्छा प्रमाण माना जाता है। पर स्पिरिट और ऑपरट्यूनिटी, दोनों मिलकर साबित नहीं कर पाए कि मंगल कभी आबाद था या वहां पानी वास्तव में था। 1960 से अब तक इंटरनैशनल लेवल पर 39 मार्स मिशन हो चुके हैं। इनमें से 17 को आंशिक या पूर्ण सफलता मिली है। कामयाब होने वाल मिशनों में ज्यादातर अमेरिकी मिशन रहे हैं।
 भारत सरकार की मंजूरी के बाद स्पेस एजेंसी इसरो नवंबर 2013 में एक मार्स ऑर्बिटर लॉन्च करेगा। 450 करोड़ रुपये के इस मिशन में एक सैटलाइट मंगल की सतह के 100 किलोमीटर ऊपर चक्कर काटता रहेगा। इस तरह यह भविष्य के मंगल अभियानों के लिए जरूरी आंकड़े, नक्शे और जानकारियां जुटाएगा।

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