गुजरात के नरोडा पाटिया दंगा केस में एक ट्रायल कोर्ट ने 32 आरोपियों को दोषी करार दिया है जबकि 29 लोगों को केस से बरी कर दिया गया है। इस फैसले से मोदी सरकार को बड़ा झटका मिला है। नरोडा से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की विधायक माया कोडनानी और बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी को भी केस में दोषी करार दिए गए हैं। अहमदाबाद: 2002 के गुजरात दंगों के नरोदा पाटिया नरसंहार मामले में विशेष अदालत ने 32 लोगों को दोषी करार दिया है, जबकि 29 को आरोपों से बरी कर दिया है। जिन लोगों को हत्या और साजिश रचने का दोषी करार दिया गया है, उनमें नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री रह चुकीं माया कोडनानी और बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी शामिल हैं। गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान नरोदा पाटिया में एक ही समुदाय के 97 लोगों की हत्या कर दी गई थी।स्पेशल कोर्ट के फैसले में विश्व हिंदू परिषद के नेता बाबू बजरंगी को भी दोषी करार दिया गया है। बाबू बजरंगी इस केस में आरोपी नंबर 18 हैं। सबसे बड़ी बात यह रही कि तत्कालीन बीजेपी सरकार की विधायक माया कोडनानी को भी दोषी करार दिया गया है। माया कोडनानी मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की करीबी थीं और दंगों के बाद उन्हें सरकार में मंत्री भी बनाया गया था।नरोदा पाटिया कत्लेआम पहला मामला है जहां मोदी सरकार में मंत्री रहीं बीजेपी विधायक माया कोडनानी की सीधी भूमिका का आरोप लगा और जिसके चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा। आरोपी नंबर 37 माया कोडनानी पर लोगों को उकसाने का आरोप है। एसआईटी ने भी कोडनानी के खिलाफ काफी सबूत पेश किए हैं।
माया कोडनानी और बाबू बजरंगी पर 302 जैसी संगीन धाराएं लगाई हैं। 120 बी, आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दोनों को दोषी पाया है। 149 की धारा का भी कोर्ट ने उल्लेख किया है। इससे दोनों को उम्र कैद से लेकर फांसी तक की सजा दी जा सकती है। 300 से ज्यादा लोगों ने इस केस में गवाही दी है नरोडा पाटिया दंगा मामले में माया कोडनानी भी दोषी करार देने पर बीजेपी नेता यतिन ओझा ने कहा कि लोकशाही में जो भी फैसला है उसका सम्मान करना पड़ता है। किसी एक नेता पर आरोप लगना पूरी पार्टी पर आरोप नहीं लगाता।गुजरात दंगों में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीनचिट नहीं मिली है। दंगों की जांच कर रही एसआईटी ने मोदी की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए हैं। 600 पेज की रिपोर्ट में कहा गया है कि दंगों के दौरान मोदी ने लोगों को उकसाने और भेदभावपूर्ण तरीके से काम किया था।
तहलका पत्रिका के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दंगों की जांच कर रही एसआईटी ने मोदी की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। 600 पेज की रिपोर्ट में कहा गया कि दंगों के दौरान मोदी ने लोगों को उकसाने का काम किया और बतौर मुख्यमंत्री भेदभावपूर्ण तरीके से काम किया। पुलिस पर दबाव डाला गया। दंगाईयों को बचाने की कोशिश की गई और मामले से जुड़े दस्तावेजों को नष्ट कर दिया गया।पोर्ट के मुताबिक गुलबर्ग सोसायटी, नरोडा पाटिया और दूसरी जगहों पर हुए हत्याकांड को मोदी ने सामान्य ढंग से लिया। रिपोर्ट में कहा गया कि मोदी ने अल्पसंख्यकों की हत्या की निंदा नहीं की। जिससे गुजरात में सांप्रदायिकता का माहौल बिगड़ा। दंगे के दौरान मोदी की कैबिनेट में शामिल दो मंत्री अशोक भट्ट और आईके जडेजा अहमदाबाद के पुलिस कंट्रोल रूम पहुंच गए। उन्होंने पुलिस को गलत निर्देश दिए और दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई न करने को कहा।तहलका पत्रिका के मुताबिक एसआईटी रिपोर्ट में मोदी के भेदभावपूर्ण रवैए का भी जिक्र किया गया है। मोदी दंगा प्रभावित अहमदाबाद के उन इलाकों में नहीं गए जहां बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक मारे गए थे, बल्कि वो उसी दिन 300 किमी का सफर तय कर गोधरा गए। दंगों के संवेदनशील मुकदमों की सरकार की ओर से पैरवी के लिए संघ के लोगों को सरकारी वकील बनाया गया। सरकार मुकदमों की पैरवी के लिए भी राजनीतिक जुड़ाव वाले वकील चाहती थी। पुलिस ने नरोडा पाटिया और गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड की जांच ठीक से नहीं की। जानबूझकर संघ और बीजेपी नेताओं के फोन रिकार्ड को नहीं खंगाला गया।
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