नई दिल्ली। मनमोहन सरकार ने कैबिनेट में मामूली फेरबदल कर ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे को गृह मंत्री बना दिया। जबकि ऊर्जा मंत्रालय का 'अतिरिक्त प्रभार' कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री वीरप्पा मोइली को दिया गया।
राष्ट्रपति कार्यालय ने कैबिनेट में यह सूचना जारी की। सभी मंत्री आज से अपना नया प्रभार संभाल लेंगे।
उपराष्ट्रपति चुनावों के एक दिन बाद आठ अगस्त से संसद का मानसून सत्र शुरू होगा। इसे देखते हुए यह फेरबदल जरूरी था। प्रणब मुखर्जी के स्थान पर शिंदे को लोकसभा में सदन के नेता की जिम्मेदारी भी सौंपी जा सकती है। करीब साढ़े तीन साल बाद 66 वर्षीय पी. चिदंबरम को फिर वित्त मंत्रालय का तोहफा मिला। बावजूद इसके कि 2जी घोटाले में उनकी भूमिका पर अब भी सवाल उठाए जा रहे हैं। उन्हें दिसंबर 2008 में गृह मंत्रालय सौंपा गया था। प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद वित्त मंत्रालय का प्रभार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह संभाल रहे थे।
वहीं, सुशील कुमार शिंदे का महाराष्ट्र के एक मामूली से पुलिस सब इंस्पेक्टर से लेकर यूनियन मंत्री तक सफर बड़ा रोचक रहा है। कई उतार चढ़ाव के बाद वह इस मुकाम पर पहुंच पाए, जहां आज वे हैं।
सुशील कुमार शिंदे की सबसे बड़ी खासियत, उनका सबको साथ लेकर चलने का व्यवहार है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने से काफी पहले वह छह साल तक पुलिस में रहे। इसके बाद लंबे वक्त तक पार्टी संगठन और सरकार में रहे। शिंदे ने वित्त मंत्री के तौर पर नौ बार महाराष्ट्र का बजट पेश किया। इसके अलावा कल्चर मिनिस्टर के तौर पर भी कर्इ काबिलेतारिफ काम किया।
वर्ष 2004 में राज्य में कांग्रेस की जीत के बावजूद वे मुख्यमंत्री बनने में असफल रहे और उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया जा रहा था। लेकिन इसके कुछ बरस बाद, 2006 की जनवरी में शिंदे देश की राजनीति में उभर कर सामने आए और ऊर्जा मंत्री बने।
गांधी परिवार के सबसे वफादार नेताओं में शुमार शिंदे वर्ष 2002 में यूपीए की ओर से उप राष्ट्रपति के चुनाव में भी उतरे लेकिन भैरो सिंह शेखावत के सामने जीत नहीं पाए।
गांधी परिवार के सबसे वफादार नेताओं में शुमार शिंदे वर्ष 2002 में यूपीए की ओर से उप राष्ट्रपति के चुनाव में भी उतरे लेकिन भैरो सिंह शेखावत के सामने जीत नहीं पाए।
एक दलित नेता और मजबूत मंत्री के तौर पर जाने जाने वाले सुशील कुमार शिंदे अब 71 वर्ष के हो गए हैं। उन्होंने अपनी जिंदगी की शुरुआत अदालत में एक चपरासी के तौर पर की थी। इसके बाद पुलिस की नौकरी के दौरान वह राजनीति के करीब आए। उनके गुरु शरद पवार से भी उनकी मुलाकात उसी दौर में हुई थी।
पवार उस दौर में राज्य कांग्रेस के महासचिव थे। पवार ने शिंदे की काबिलियत को पहचान लिया था और उन्हें राजनीति में शामिल होने का न्यौता देते हुए विधानसभा चुनाव लड़ने को कहा। वर्ष 1974 में शिंदे करमाला सीट पर अपनी किस्मत अजमाने के लिए उतरे और जीत भी गए। इसके बाद वह राज्य में मंत्री बनाए गए। 4 सितंबर 194 को जन्म शिंदे पांच बार सोलापुर से विधानसभा पहुंचे हैं और तीन बार लोकसभा।
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