62 के युद्ध से सबक ले भारत : चीन
बीजिंग। चीन ने कहा है कि भारत को 1962 के युद्ध
से सबक लेना चाहिए कि चीन भले ही शांति चाहता है, लेकिन वह
अपनी ‘जमीन’ की सुरक्षा दृढ़ता से
करेगा। चीन की सत्ताधारी पार्टी के मुखपत्र में प्रकाशित एक लेख में यह बात कही गई
है। यह बात ऐसे समय में सामने आई है जब जुलाई में दोनों देशों के प्रतिनिधि सीमा
विवाद सुलझाने के लिए वार्ता करने वाले हैं। सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के अखबार ‘ग्लोबल
टाइम्स’ के वेब संस्करण पर डाले गए इस लेख में कहा गया है कि
1962 के युद्ध का मकसद भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू
को अमेरिका और सोवियत संघ के प्रभाव से जगाने के लिए मजबूत ठोकर लगाना था। लेख में
दावा किया गया है कि चीन के नेता माओ-त्से-तुंग के गुस्से का असली निशाना वाशिंगटन
और मॉस्को थे। इस लेख का शीर्षक ‘चाइना वॉन, बट नेवर वांटेड सिनो-इंडियन वार (चीन जीता, लेकिन वह
भारत-चीन युद्ध नहीं चाहता)’ है। इसके लेखक हांग युआन चीन की
समाज विज्ञान अकादमी के सेंटर ऑफ वल्र्ड पॉलिटिक्स के उप महासचिव हैं। लेख में कहा गया है, ‘पचास साल पहले जब
चीन कई तरह की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं से जूझ रहा था तब 1959 से 1962 के बीच नेहरू ने भारत-चीन सीमा पर और
मुश्किलें पैदा कीं।’ लेख में जीत के बाद संघर्षविराम घोषित
करने की चीन की ‘शांतिपूर्ण इच्छाओं’ और
युद्ध लड़ने में उसकी ‘अनिच्छा’ का
जिक्र किया गया है। रोचक बात है कि इस लेख में कहा गया है कि चीन ने यह युद्ध
भारत से शांति बनाने के लिए छेड़ा था। इसके मुताबिक, ‘युद्ध
समझौते की एक रणनीति थी न कि लक्ष्य। पचास साल पहले भारतीय सरकार स्वार्थी हितों
में अंधी हो गई थी और चाहती थी कि चीन कॉलोनियल शक्तियों की तय की गई सीमा को
स्वीकार कर ले। इसे नामंजूर कर दिया गया।’ लेख में आगे कहा
गया है, आज दोनों देशों को इस युद्ध के सबक और अपने प्राचीन
संबंधों से सीखना चाहिए। चीनी लोग तो शांतिप्रिय हैं लेकिन वे अपनी जमीन की रक्षा
भी करेंगे।
1.माओ का मानना था कि भारत से युद्ध एक राजनीतिक लड़ाई भी थी और मुख्य निशाना चीन के खिलाफ षड्यंत्र करने वाले अमेरिका और सोवियत संघ थे।
2.माओ ने युद्ध के जरिए भारत को महाशक्तियों के प्रभाव से मुक्त किया। साथ ही भारत-चीन की प्राचीन साझा विरासत का महत्व याद दिलाया।
3.जीत के बाद भी संघर्षविराम की घोषणा कर सौहार्द का हाथ बढ़ाया। इससे लंबी दोस्ती का रास्ता खुला।
1.माओ का मानना था कि भारत से युद्ध एक राजनीतिक लड़ाई भी थी और मुख्य निशाना चीन के खिलाफ षड्यंत्र करने वाले अमेरिका और सोवियत संघ थे।
2.माओ ने युद्ध के जरिए भारत को महाशक्तियों के प्रभाव से मुक्त किया। साथ ही भारत-चीन की प्राचीन साझा विरासत का महत्व याद दिलाया।
3.जीत के बाद भी संघर्षविराम की घोषणा कर सौहार्द का हाथ बढ़ाया। इससे लंबी दोस्ती का रास्ता खुला।
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