Tuesday, May 29, 2012


'आखिरकार तिवारी ने दिया खून का नमूना'
देहरादून, जागरण संवाददाता। पितृत्व विवाद में फंसे उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को मंगलवार को अंतत: अपने खून का नमूना देना ही पड़ा। अब उनके पुत्र होने का दावा करने वाले रोहित का सच सामने आ जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद सुबह 10 बजे के आसपास ही एक पांच सदस्यीय टीम उनके घर पहुंच गई थी। इस टीम में रोहित शेखर और उसकी मां उज्ज्वला भी शामिल थी।
जिला जज राजकृष्ण गुप्ता के नेतृत्व में दून अस्पताल के प्रमुख अधीक्षक डॉ. बीसी पाठक समेत आधा दर्जन डॉ. और अधिकारियों की टीम ने तिवारी के खून का नमूना लिया। तिवारी के घर के बाहर कानून-व्यवस्था बनाए रखने लिए पुलिस बल को तैनात किया गया है। मंगलवार सुबह से ही उनके फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट परिसर स्थित आवास अनंत वन पर मीडिया का जमावड़ा शुरू हो गया था। सुबह दस बजे उज्जवला कार से एफआरआई परिसर पहुंची और गेट के निकट की रूक गई। मीडिया से रू-ब-रू होते हुए उज्ज्वला ने कहा कि छह माह पूर्व उनकी न्याय मिलने की उम्मीदें क्षीण पड़ने लगी थी, मगर अब जिस तरह से कोर्ट ने मसले पर सख्त रुख अपनाया है उससे अब लगता है कि प्रकिया सही दिशा में आगे चल रही है। तकरीबन सवा दस बजे रोहित शेखर भी अपने वकीलों व परिजनों के साथ एफआरआई परिसर पहुंच गए। जिला जज के आते ही उज्जवला और रोहित भी उनके साथ तिवारी के आवास पहुंचे। हालांकि पहले पुलिस ने उज्जवला को गेट पर ही रोक लिया। बाद में जिला जल की अनुमति मिलने के बाद वे भी तिवारी के आवास पहुंची। उधर, तिवारी के विशेष कार्याधिकारी संजय जोशी ने बताया कि देहरादून के जिला न्यायाधीश के नेतृत्व में प्रशासन, चिकित्सक तथा पुलिस के एक बडे़ अमले के बीच तिवारी ने अपने रक्त का नमूना दे दिया। जोशी ने बताया कि दून अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक के नेतृत्व में चिकित्सकों के एक दल ने तिवारी के रक्त का नमूना लिया और अन्य चिकित्सकीय औपचारिकताएं पूरी कीं। उन्हाेंने कहा कि दोनों पक्ष के अधिवक्ता भी इस मौके पर उपस्थित थे। वैधानिक औपचारिकताएं पूरी करने में करीब चार घंटे का समय लगा।उल्लेखनीय है कि सुप्रीमकोर्ट ने 24 मई को 88 वर्षीय तिवारी की इस दलील को खारिज कर दिया था कि काफी उम्रदराज हो जाने की वजह से वह खून का नमूना नहीं दे सकते। दलील खारिज करते हुए पीठ ने कहा था किइसका मतलब यह नहीं है कि उनके बदन में खून नहीं दौड़ रहा।न्यायमूर्ति दीपक वर्मा और न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय की सदस्यता वाली पीठ ने कहा था कि यदि आप इतने पाक साफ हैं तो जाइए और अपने खून का नमूना दीजिए। क्या अदालती फरमान की सिर्फ इसलिए नाफरमानी की जा सकती है कि शख्स का कद बहुत ऊंचा हैशेखर ने साल 2008 में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर गुहार लगाई थी कि वह इस बाबत निर्देश दे ताकि आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रह चुके तिवारी को उनका पिता घोषित किया जा सके। तिवारी से कहा गया था कि वह देहरादून में 29 मई यानी आज जिला न्यायाधीश और स्थानीय सिविल सर्जन के सामने मौजूद रहें। जिला न्यायाधीश और सिविल सर्जन के साथ एक पैथोलॉजिस्ट के भी होने की बात कही गई थी। पीठ ने स्पष्ट कर दिया था कि तिवारी अपने खून का नमूना देने से बच नहीं सकते। बहरहाल, पीठ ने तिवारी के वकील और पूर्व सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम की इस दलील को मान लिया कि हैदराबाद में होने वाली डीएनए जांच की गोपनीयता बनाए रखने के लिए कुछ उपाय किए जाने चाहिए। हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नॉसटिक्स लैबोरेट्री में जांच की जाएगी। अदालत ने कल तिवारी की इस मांग को मानने से इन्कार कर दिया था कि पितृत्व विवाद के मामले में अदालती कार्यवाही की गोपनीयता बरकरार रखी जाए।

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