'रक्षा सौदो मे भ्रष्टाचार के वजह'
सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह ने उन्हें रिश्वत की पेशकश किए जाने का जो दावा किया है, वह सैन्य सौदों में भ्रष्टाचार की पोल खोलता है। रक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा रास्ता खरीदी प्रक्रिया के जरिए ही खुलता है। सरकार कहती है कि सौदे में दलालों को शामिल नहीं किया जाएगा, दलाली नहीं दी जाएगी। फिर भी बिना कमीशन के कोई सौदा तय नहीं होता। दलाली नहीं देने के लिए सख्त मानदंड तय किए जाने के बावजूद यह स्थिति है। इसके कई कारण हैं। कोई भी सौदा तय होने में होने वाली देरी से भी भ्रष्टाचार बढ़ता है। देरी की एक वजह अफसरों की जिम्मेदारी से बचने की प्रवृत्ति है। अफसर यह सोच कर फूंक-फूंक कर कदम रखते हैं कि जांच होने पर उनकी गर्दन न फंसे। क्योंकि सौदेबाजी से गलत कमाई नेता करते हैं, लेकिन जांच होने पर गाज अफसरों पर ही गिरती है। खरीद की प्रक्रिया को नेता गलत ढंग से प्रभावित करते हैं। खरीद के लिए सेना अपनी जरूरत तय करके प्रस्ताव देती है। इसके बाद टेंडर निकाला जाता है। टेंडर में भाग लेने वाली कंपनियों में से सही पात्र को चुना जाता है। फिर उनकी ओर से आपूर्ति की जाने वाले हथियार आदि का परीक्षण होता है। इस परीक्षण के दौरान ही अवैध सौदेबाजी होती है। अक्सर नेताओं की ओर से अफसरों पर दबाव देकर मानदंडों से समझौता कराया जाता है। सेना प्रमुख ने जो दावा किया है, इस मामले में कोई राजनीतिक दखलअंदाजी थी या नहीं, यह जांच का विषय है। कई बार आपात जरूरत के नाम पर भी भ्रष्टाचार होता है। निर्णय लेने में देरी या और वजहों से पहले से खरीद नहीं की जाती है, लेकिन तत्काल जरूरत पड़ने पर कई गुना ज्यादा दाम में खरीदारी होती है। खरीद प्रक्रिया में स्वतंत्र एजेंसी की निगरानी का अभाव है। सीएजी कुछ हद तक इस पर नजर रखती है, लेकिन वह सौदा होने के बाद पड़ताल करता है। प्रक्रिया के दौरान अगर कोई गड़बड़ी हो रही है तो उसे पकड़ने और रोकने का ठोस तंत्र नहीं है। खरीद में देरी और भ्रष्टाचार की एक वजह यह भी है कि आज लॉबीज बन गई हैं। कुछ समय पहले तक हम 80 से 85 फीसदी खरीदारी रूस से करते थे। लेकिन अब कई देशों की कंपनियां दौड़ में हैं। सबने अपने एजेंट फैला रखे हैं और उनके बीच 'कॉरपोरेट वॉर' चलता रहता है। एक एजेंट दूसरी कंपनी की डील में अड़ंगा डालने के लिए तमाम हथकंडे अपनाते हैं। नतीजा होता है खरीद प्रक्रिया पूरी होने में देरी। ऐसे में चुनौती यह भी है कि वह अपनी जरूरतों के मुताबिक निष्पक्ष निर्णय जल्दी लेने और उस पर अडिग रहने का तंत्र विकसित हो। जिम्मेदारी तय करने की प्रक्रिया का घोर अभाव है। कुछ समय पहले एक अहम रक्षा सौदे से जुड़ी फाइल सड़क किनारे पड़ी मिली। इसके लिए किसी की जिम्मेदारी तय नहीं हुई। उल्टे, सरकार ने दलील दी कि इससे सूचना लीक नहीं हुई। हमारी व्यवस्था में दोषियों को सजा देने का कोई सख्त उदाहरण नहीं है। चीन में भ्रष्टाचारियों को सीधे फांसी पर लटकाया जाता है। यह अलग बात है कि इससे भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो गया, लेकिन भ्रष्टाचारियों में खौफ तो बना ही है। मौजूदा सेना प्रमुख ने भ्रष्टाचार को नहीं बर्दाश्त करने की नीति पर अमल किया है। इससे एक उम्मीद जगी है। उनके आरोपों पर रक्षा मंत्रालय ने सीबीआई जांच का ऐलान किया है, लेकिन बोफोर्स दलाली का उदाहरण हमारे सामने है। 1962 से ही देखा जाए तो सरकार ने ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया है, जिसे सुरक्षा के लिहाज से मजबूत और इस क्षेत्र में संस्थागत भ्रष्टाचार कम करने की दिशा में सकारात्मक कहा जा सके। सरकार अपना दायित्व निभाने में हमेशा पीछे रही है। हमारी रक्षा क्षमता जितनी होनी चाहिए, उतनी कभी नहीं रही। जो भी पैसा खर्च हुआ, सही तरीके से नहीं हुआ। यह हमने कारगिल युद्ध के समय भी देखा और मुंबई हमलों के बाद भी। हमने बोट खरीद ली, लेकिन उन्हें चलाने के लिए ईंधन नहीं दे पाए। रक्षा क्षेत्र में प्रक्रियागत भ्रष्टाचार तो है ही, पर इससे ज्यादा खतरनाक है संस्थागत भ्रष्टाचार। इस स्थिति के लिए जिम्मेदारी तय करने की बात करें तो ज्यादा जिम्मेदारी राजनीतिक नेतृत्व पर ही आती है। निर्णय प्रक्रिया में हावी नेता ही होते हैं। सैन्य नेतृत्व की भूमिका योजना बनाने तक सीमित है, फैसले लेने का दायित्व राजनीतिक नेतृत्व के पास ही है। नेतृत्व का हाल यह है कि खतरे को भांप कर उसके लिए तैयार रहने की नीति पर कभी नहीं अमल किया गया। बल्कि खतरा आने के बाद उसे किसी तरह भारत और दुनिया के शायद अब तक के सबसे बड़े रक्षा ठेके में फ्रांसीसी विमानन कंपनी दसॉ ने चार साल से अधिक समय तक चली प्रतिस्पर्धा में जीत हासिल कर ली है। दसॉ ने भारतीय वायुसेना को 52 हजार करोड़ रुपये (10.4 अरब डॉलर) में 126 लड़ाकू विमानों की आपूर्ति करने का ठेका हासिल किया। भारत अपनी सेना के आधुनिकीकरण के लिए एक यूरोपीय रक्षा उत्पादन कंपनी से 500 मिसाइल खरीद रहा है। सूत्रों के अनुसार यह डील सवा अरब डॉलर की है। भारत ने हाल में एक फ्रांसीसी फर्म से वायु सेना के मिराज-2000 लड़ाकू विमानों के लिए हवा से हवा में मार करने वाली 490 मिसाइलों की खरीद के लिए 95 करोड़ यूरो के एक सौदे को मंजूरी दी है। इन मिसाइलों को 51 मिराज-2000 विमानों में तैनात किया जाएगा, जिन्हें फ्रांस के कारखानों में उन्नत बनाने पर काम चल रहा है। इन विमानों को अत्याधुनिक बनाने के लिए पहले ही 1.47 अरब यूरो के सौदे पर हस्ताक्षर किया जा चुका है।
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