Friday, April 20, 2012


'संकट मे मिला ताज फिर संकट में'

विजय बहुगुणा ने उत्तराखण्ड के पांचवे मुख्यत्री के रुप मे 13 मार्च 2012 को पद संम्भला टिहरी से कांग्रेस के सांसद हैं.विजय बहुगुणा का जन्म 28 फरवरी, 1947 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ।
विजय बहुगुणा कॉंग्रेस के दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय हेमवती नन्दन बहुगुणा के बेटे हैं और उत्तर प्रदेश कॉंग्रेस की अध्यक्ष रीता बहुगुणा के भाई है.चौंसठ वर्षीय विजय बहुगुणा पेशे से वकील हैं और इलाहाबाद और मुंबई हाईकोर्ट के जज भी रहे हैं.वह पहली बार 2007 में लोकसभा के उपचुनाव में टिहरी से सांसद बने थे और 2009 में दोबारा सांसद चुने गए.विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनाए जाने से कॉंग्रेस को दो उपचुनावों का सामना करना पड़ेगा. पहला उन्हें विधायक बनाने के लिए किसी नवनियुक्त विधायक को अपनी सीट खाली करनी पड़ेगी. दूसरा टिहरी संसदीय सीट पर भी दोबारा चुनाव होंगे.विजय बहुगुणा के सिर पर गठबंधन सरकार को चलाने की चुनौतियों के साथ-साथ खुद अपनी ही पार्टी में भितरघात से निबटने की बड़ी समस्या होगी. अगर इसे कांटों का ताज कहा जाए तो ये अति नहीं होगी.फिलहाल देहरादून स्थित कॉंग्रेस के मुख्यालय में बम पटाखों का शोर जरूर है लेकिन मुख्यमंत्री पद के दूसरे दावेदारों के समर्थकों का विरोध भी इस शोर में शामिल है जिनके बीच पार्टी हाईकमान के इस निर्णय से काफी खलबली है.कोई आश्चर्य नहीं कि कॉंग्रेस की इस गठबंधन सरकार को भी मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिये उसी खींचतान से जूझना पड़े जो बीजेपी की सरकार में निशंक,खंडूरी और कोश्यारी के बीच पूरे पांच साल तक जारी रहा.विजय बहुगुणा उत्तराखंड की उलझी हुई चुनावी राजनीति में कोई परिपक्व खिलाड़ी भी नहीं समझे जाते हैं. इसकी पहली परीक्षा उन्हें खुद विधानसभा में चुनकर जाने में होगी. वैसे उत्तराखंड की राजनीति में "विजय बहुगुणा की सरकार की स्थिरता इस बात पर निर्भर करेगी कि बाकी चारों सांसद उनके साथ सहयोग करते हैं या उनकी घेराबंदी करके कमजोर करते हैं." इस तरह सरकार की मजबूती पर हमेशा खतरे की तलवार लटकी रहेगी. इसके अलावा निर्दलीयों और क्षेत्रीय दल का दबाव अलग होगा क्योंकि कॉग्रेस अपने दम पर बहुमत में नहीं है. 70 सदस्यीय विधानसभा में काग्रेस को 32 सीटें मिली थी. जिसके बाद उऩ्हे चार निर्दलीय विधायको का समर्थन हासिल है. बहुजन समाजवादी पार्टी ने भी कांगेंस को समर्थन देने का संकेत दिया है.. फिलहाल तो बहुगुणा सरकार ने विधान सभा मे बहुमत हासिल कर लिया है परन्तु अब सीएम पद पर बनें रहने के लिए उन्हें खुद भी बहुमत हासिल करना पडेगा जो उनके लिए आसान नही रहने वाला है। मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल रहे हरक सिंह रावत अभी तक मंत्री पद की शपथ नहीं ले पाए हैं, लेकिन राजनैतिक विश्लेषक मानकर चल रहे हैं कि बहुगुणा सरकार में अन्य मंत्रियों की तरह हरक सिंह रावत को भी मंत्री पद की शपथ दिलाने के साथ-साथ भारी भरकम महकमें सौपें जाएंगे। सोनिया गाधी से मुलाकात के बाद हरक सिंह रावत मीडिया में आए अपने बयानों को लेकर स्पीष्टिकरण दे चुके हैं और उनका साफ कहना है कि उन्होंने कभी मंत्री पद जुते की नोक पर रखने की बात नहीं कही। और हमेशा से ही हाईकमान के आदेश को मानने को काम किया है। उनके इस कथन के बाद माना जा रहा है हाईकमान के आदेश पर अब वह मंत्री पद की शपथ लेंगे और 11वें मंत्री के रूप में बहुगुणा सरकार की पारी को आगे बढ़ाने में मदद करेंगे। कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर सभी दावेदार मंत्रियों की कुर्सी पर विराजमान हो गए हैं और ऐसे कई नेता जो लालबत्ती की कतार में खड़े हैं, इन मंत्रियों के दरवाजों पर दस्तक देने के साथ-साथ अपने-अपने पक्ष में लॉबिंग करने में जुट गए हैं। राजनैतिक सूत्र बताते हैं कि इस बात की भी हवा राजनीति के गलियारों में दौड़नी शुरू हो गई है कि प्रदेश से कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी चौधरी विरेन्द्र सिंह का पत्ता साफ होने के बाद विजय बहुगुणा भी सीएम पद पर सरेंडर कर सकते हैं। इसके पीछे मुख्यमंत्री का अभी तक विधानसभा सीट फाईनल न कर पाना भी सामने आ रहा है। क्योंकि सोनिया दरबार में विजय बहुगुणा ने यह कहकर सीएम पद पर हरी झण्डी ली थी कि वह निर्दलीयों के साथ-साथ भाजपा के एक विधायक से सीट खाली कराकर वहां से चुनाव लडेंगे। लेकिन भाजपा विधायक से सीट खाली कराने को लेकर बहुगुणा के बयान के बाद केंद्रीय मंत्री हरीश रावत इसे कांग्रेस के लिए उचित नहीं मान रहे, उनका साफ मानना है कि भाजपा विधायक से सीट खाली कराने के बाद प्रदेश में स्वच्छ राजनीति शुरू नहीं रह पाएगी और यदि इसके बजाय किसी अन्य से सीट खाली कराई जाए तो यह ज्यादा मुफीद साबित होगा। कांग्रेस उत्तराखण्ड में सीएम विजय बहुगुणा के लिए होने वाले उपचुनाव को लेकर अपनी रणनीति में जुटी हुई है और माना जा रहा है भाजपा का विधायक यदि सीट खाली नहीं करता तो निर्दलीय विधायक के साथ-साथ कांग्रेस के किसी विधायक से जो टिहरी लोकसभा क्षेत्र में आता है उस पर दांव आजमाया जाएगा। वहां से भाजपा खण्डूडी पर दांव खेलने की तैयारी में भी जुटी हुई है और एक बार फिर भाजपा को यह आस है कि खण्डूडी बहुगुणा को हराकर उत्तराखण्ड में जरूरी बन जाएंगे। राजनीति के गलियारों में यह चर्चा भी तेजी से दौड़ रही है कि विजय बहुगुणा छहः महीने के अंदर ही चारों खाने चित्त होने के बाद उत्तराखण्ड में भाजपा को सरकार बनाने में मदद करेंगे। क्योंकि बहुगुणा की हार के बाद यदि खण्डूडी बहुगुणा के सामने चुनाव लड़ते हैं तो खण्डूडी की जीत भाजपा को सरकार बनाने में ज्यादा मददगार साबित होगी। कुल मिलाकर उत्तराखण्ड की राजनीति में अंतिम फैसला कांग्रेस हाईकमान के दरबार से होना तय है। 




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