Thursday, November 8, 2012

संघ के समर्थन से नितिन गडकरी की कुर्सी बची


संघ के समर्थन से बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी की कुर्सी तो बच गई, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे गडकरी को दूसरा कार्यकाल दिए जाने को लेकर पार्टी के वरिष्ठ नेता एकमत नहीं हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों पर पार्टी की क्लीनचिट मिलने के अगले दिन यानी बुधवार को भी बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने वरिष्ठ नेताओं से अपनी मुलाकात का सिलसिला जारी रखा। गडकरी ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज के अलावा पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह से भी मुलाकात की। माना जा रहा है कि मौजूदा कार्यकाल के लिए पार्टी से अभयदान मिलने के बाद गडकरी अब दूसरे कार्यकाल के लिए वरिष्ठ नेताओं को मना रहे हैं। लेकिन गडकरी को दूसरा गडकरी को दूसरे कार्यकाल को लेकर सुषमा का विरोध खत्म हो गया है। सुषमा को लगता है कि ऐसा करने से संघ उन्हें भविष्य की राजनीति में मदद करेगा। राजनाथ सिंह भी गडकरी के समर्थन में खड़े दिखाई दे रहे हैं। संघ ने ही राजनाथ को पार्टी अध्यक्ष बनवाया था। संघ से बीजेपी में आए संगठन महासचिव रामलाल भी गडकरी को दूसरा कार्यकाल दिलाने के लिए पेशबंदी कर रहे हैं।कार्यकाल दिए जाने पर पार्टी नेताओं की राय बंटी हुई हैं। पार्टी की ओर से इस पर खुलकर कुछ भी नही कहा जा रहा है।बीजेपी महासचिव जे पी नड्डा के मुताबिक दूसरे कार्यकाल पर पार्टी नेता सही समय पर उचित निर्णय लेगें। संघ के दबाव में पार्टी ने गडकरी को दूसरा कार्यकाल दिलाने के मकसद से ही अपने संविधान में संशोधन किया था। सूत्रों के मुताबिक संघ पूरी तरह चाहता है कि गडकरी को दूसरा कार्यकाल मिले। संघ पृष्ठभूमि के नेता गडकरी के समर्थन में लामबंदी कर रहें हैं। इसका असर भी दिखने लगा है।
लेकिन गडकरी के दूसरे कार्यकाल का विरोध करने वालों की फैहरिस्त भी लंबी है। आडवाणी गडकरी को दूसरा कार्यकाल देने के खिलाफ अपनी राय संघ को बता चुके हैं। आडवाणी का तर्क है कि गडकरी को साथ लेकर चलने से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई कमजोर होगी और 2014 में खामियाजा उठाना पड़ेगा। अरुण जेटली ने संघ के दबाव में फिलहाल समर्थन का ऐलान किया है लेकिन वो दूसरे कार्यकाल के विरोध में हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी फिलहाल चुप हैं लेकिन वो भी गडकरी से ज्यादा खुश नहीं बताए जाते। कहा तो यहां तक जा रहा है कि मोदी गुजरात में प्रचार करने से गडकरी को रोक भी सकते हैं।
यही नहीं, यशवंत सिन्हा और जसवंत सिंह जैसे नेता भी गडकरी के खिलाफ खड़े हैं। रामजेठमलानी भले ही हाशिए पर हैं, लेकिन गडकरी के खिलाफ मोर्चा खोलकर उन्होने विरोधियों की भावना को ही आवाज दी है। रामजेठमलानी के मुताबिक जो भी फैसला बीजेपी नें किया है उससे उनकी करप्शन के खिलाफ लडाई कमजोर ही होगी। अब संघ को ये तय करना है कि ग़डकरी विरोधियों की बात मानें और अपनी पसंद के किसी दूसरे नेता को कमान दे या तमाम विरोधों के बावजूद अपनी ताकत का इस्तेमाल गडकरी को दूसरा कार्यकाल दिलाए।

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