Thursday, May 31, 2012


बंद ने किया लोगों को तंग ,जगह :जगह हुए हुडदंग
आज एक बार फिर भारत बंद है। बंद महंगाई के खिलाफ है। पर इतिहास गवाह है कि हाल के दिनों में कोई राजनीतिक पार्टी बंद करा कर अपनी मांग नहीं मनवा पाई है। यहां तक कि अन्‍ना के जनांदोलन से भी वह हासिल नहीं हो सका, जिसके लिए जनांदोलन किया गया था।   बंद आम जनता के नाम पर आयोजित किए जाते हैं। पर बंद के दिन जनता पर तिहरी मार पड़ती है। उस दिन काम-काज का नुकसान तो होता ही है, बंद समर्थकों द्वारा सार्वजनिक संपत्ति को पहुंचाए गए नुकसान की भरपाई का बोझ भी उसके ऊपर पड़ जाता है। और, जिस समस्‍या से निजात दिलाने के लिए बंद किया जाता है, अगले दिन वह समस्‍या भी जस की तस बनी रहती है।   आज के बंद की ही बात करें तो लोग समय पर दफ्तर नहीं पहुंच सके, दिहाड़ी मजदूरों को काम नहीं मिल सका, मरीजों को अस्‍पताल पहुंचने में मुश्किल हो रही है, रेल यात्री जहां-तहां फंसे हुए हैं..... जनता इस तरह के बंद के पक्ष में नहीं है।  
पिछले दिनों आयोजित कुछ बंद से हुए नुकसान पर भी एक नजर डालिए:   तेलंगाना के लिए बंद: साल 2010 में अलग तेलंगाना के लिए आयोजित बंद से आंध्र प्रदेश में 60 हजार लोगों की रोजी-रोटी गई। एक दिन के बंद से राज्‍य में केवल कंपनियों को 530 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया गया। अगस्‍त 2010 से अगस्‍त 2011 के दौरान राज्‍य में करीब 17 दिन बंद आयोजित किया गया और इससे 9010 करोड़ रुपये की चपत लग गई। तेलंगाना राज्‍य अब तक नहीं बन सका है।
6 जुलाई, 2010: अखिल भारतीय व्यापारी परिसंघ (कैट) ने बताया कि भारत बंद के दौरान व्यापारियों ने बढती महंगाई के खिलाफ कारोबार बंद रखा। इससे तकरीबन 20 हजार करोड रुपए का नुकसान हुआ और सरकार को तीन हजार करोड़ रुपए के राजस्व की हानि उठानी पड़ी।    इन बातों पर गौर करते हुए इस सवाल का जवाब जानना-समझना मौजूं हो जाता है कि इस तरह के बंद से किसका फायदा हो रहा है और यह किसके लिए किया जा रहा है और क्‍या विरोध का यह तरीका जायज है? इन सवालों पर क्‍या है आपकी राय, नीचे कमेंट बॉक्‍स में लिख कर सबमिट करें और विरोध का कौन सा तरीका उचित है, इस पर रायशुमारी में शामिल होकर अपना वोट (बांयी ओर) दें।

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