पीएम सरीखें तेवर में दिखें 'मोंदी'
भाजपा
की अंदरूनी राजनीति में भले ही लोग नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार
मानने से हिचक रहे हों, लेकिन शुक्रवार को मुंबई की भाजपा रैली में मोदी
पीएम इन वेटिंग की ही तरह जमकर बरसे। उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की खूब धज्जियां
उड़ाई।
भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के अंतिम दिन यहां परेल के बाबू गेनू
मैदान में रैली का आयोजन किया गया था। रैली का मुख्य आकर्षण गुजरात के मुख्यमंत्री
मोदी ही थे। गडकरी से ठीक पहले बोलने खड़े हुए मोदी ने 30 मिनट के भाषण में सिर्फ पांच मिनट अपनी उपलब्धियां गिनाने पर खर्च किए।
बाकी 25 मिनट वह परत-दर-परत केंद्र की संप्रग सरकार और
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की धच्जियां उड़ाते दिखाई दिए। महाराष्ट्र के लोगों की
भावनाएं जगाने के लिए मराठी में भाषण शुरू कर यहां के सूखे पर अपनी सहानुभूति
जताने के बाद मोदी ने सीधे केंद्र सरकार पर हमला बोला। उन्होंने कहा, इस सरकार का न कोई नेता है, न नीति है और न ही नीयत
साफ है। मोदी ने केंद्र सरकार को रुपये के अवमूल्यन, महंगाई,
राष्ट्रीय सुरक्षा, घुसपैठ, नक्सलवाद और आतंकवाद के मुद्दे पर घेरते हुए सवाल किया कि देश कब तक ऐसी
सरकार को झेलता रहेगा? प्रधानमंत्री द्वारा अक्सर की जाने
वाली गठबंधन की मजबूरियों की बात पर मोदी ने कहा, जब हमारे
विदेश मंत्री संयुक्त राष्ट्र में दूसरे देश का भाषण पढ़ आते हैं, तो गठबंधन की मजबूरियां कैसे आड़े आती हैं? जब
कांग्रेसी रक्षा मंत्री और सेना में टकराव की नौबत आती है, तो
गठबंधन की मजबूरियां कैसे आड़े आती हैं? वहीं कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा ने नरेंद्र
मोदी को वर्ष 2014 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री पद का दावेदार
बताया। मोदी की पार्टी में मजबूत होती पकड़ को देखते हुए येद्दयुरप्पा ने कहा,
भाजपा को मोदी को अगले पीएम के तौर पर पेश करना चाहिए। पूरा देश
उन्हें अगला प्रधानमंत्री देखना चाहता है।
मिटीं नहीं आडवाणी व मोदी की दूरियां भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और पार्टी में दिनोंदिन मजबूत
बनकर उभरे नरेंद्र मोदी के बीच की दूरी शायद अब तक नहीं पट पाई है। बृहस्पतिवार को
कार्यकारिणी के पहले दिन की बैठक में मोदी के पहुंचने के चंद मिनट बाद ही आडवाणी
वहां से चल दिए। पार्टी अध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ाने के लिए हुए संविधान संशोधन
प्रस्ताव के वक्त भी आडवाणी मौजूद नहीं थे। बैठक में मोदी और येद्दयुरप्पा के आने के बाद भाजपा एकजुटता का दावा
कर सकती थी लेकिन शीर्ष नेतृत्व में उभरे मतभेदों से उत्साह ठंडा पड़ गया। बताते
हैं कि आडवाणी को अब तक यह कसक है कि वह अपनी जनचेतना यात्रा की शुरुआत गुजरात से
नहीं कर सके थे। आखिरकार उन्हें बिहार के सिताब दियारा से यात्रा की शुरुआत करनी पड़ी
थी। तभी से मोदी और आडवाणी का आमना-सामना नहीं हो पाया था। बृहस्पतिवार शाम मोदी
बैठक में पहुंचे तो आडवाणी वहां से चल दिए। औपचारिक तौर पर बताया जा रहा है कि
दिल्ली से मुंबई आने वाली फ्लाइट में देरी के कारण वह थके हुए थे। चर्चाएं जो भी
हों, लेकिन यह साफ दिख रहा है कि दोनों नेताओं के बीच की
दूरी अभी पटी नहीं है। वैसे शाम की रैली में तो आडवाणी के जाने के कार्यक्रम ही
नहीं था, लेकिन इसे भी दोनों नेताओं की दूरी के रूप में ही
देखा जा रहा है। पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी को लेकर भी पार्टी मतभेद गहराते दिखे।
उनका कार्यकाल बढ़ाए जाने का संशोधन पारित किए जाने के वक्त वरिष्ठ नेता मुरली
मनोहर जोशी और लोकसभा में उपनेता गोपीनाथ मुंडे भी मौजूद नहीं थे।
वहीं, अविरल गंगा पर संतों के तेज होते अभियान के बाद अब
पार्टी को इस मुद्दे की सुध आई है। उत्तराखंड में सरकार के पांच साल गंवाने के बाद
राष्ट्रीय कार्यकारिणी के अधिवेशन में गंगा पर एक प्रस्ताव पारित किया गया। पार्टी
ने गंगा की स्वच्छता के लिए अभियान चलाने का संकल्प लिया है। मुख्य रूप से
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और
पश्चिम बंगाल में चलाए जाने वाले इस अभियान में गंगा को स्वच्छ रखने का प्रयास
किया जाएगा। मुंबई में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उमा भारती ने निर्मल गंगा
अविरल गंगा के नाम से प्रस्ताव पेश किया। उन्होंने कहा कि इसके लिए जहां केंद्र और
राच्य से लेकर स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण
द्वारा लागू किए गए निर्णयों के पर्यवेक्षण के लिए कैग जैसी स्वायत्त संस्था होनी
चाहिए। बहरहाल पार्टी में कोई इसका जवाब देने को तैयार नहीं है कि उत्तराखंड में
सरकार रहते हुए भाजपा ने कोई ठोस प्रयास क्यों नहीं किया।
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