'महिलाओ के लिए यूपी नही रहा सुरक्षित'
देश के
सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्य यूपी में हाल के दिनों में महिलाओं के साथ गैंगरेप, उत्पीड़न और उन्हें जला देने की
एक के बाद एक सामने आ रही घटनाओं से पुलिस की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है।
यूपी में महिलाओं और लड़कियों की घर से बाहर सुरक्षा को लेकर तमाम तरह के सवाल भी
उठने लगे हैं। मायावती का राज खत्म होने और सपा की सरकार आने के बाद यूपी की आधी
आबादी को आस बढ़ी कि अब औरतों से ज्यादती कम होगी। लेकिन हालात नहीं बदले, हां दरिंदगी का चेहरा जरूर बदल गया। माया राज में युवतियों और छोटी
बच्चियों के साथ रेप और हैवानियत की घटनाएं तो आम थी। खुद सुप्रीम कोर्ट और
मानवाधिकार आयोग ने भी यूपी में रेप की घटनाओं पर संज्ञान लिया था। मायावती ने
हालांकि दुष्कर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के आदेश दिए थे लेकिन नतीजा कुछ भी
नहीं निकला।पिछली आंकड़ों पर नजर डाले तो 2008 में जहां दुष्कर्म के 1696
मामले सामने आए वहीं 2009 में इनकी
संख्या 1552 रही। साल 2010 में
महिलाओं के खिलाफ दुष्कर्म के 1290 मामले दर्ज किए गए।
महिलाओं के साथ दुष्कर्म और हत्या के सामने आ रहे मामलों के लिए जहां समाज के
बुद्धिजीवी, समाजसेवी व अन्य लोग पुलिस की कार्यप्रणाली
को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं वहीं उत्तर प्रदेश पुलिस के लोग इसे एक सामाजिक समस्या
बताते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक
वर्ष 2010
में पूरे देश में महिलाओं के साथ हुए अपराध के कुल 2 लाख 13 हजार 585 मामले दर्ज हुए। इनमें से अकेले 21,450 मामले उत्तर प्रदेश के हैं। लड़कियों और युवतियों के अपहरण के मामले
में यूपी 18.4 फीसदी के साथ सबसे आगे है। रुहेलखण्ड व
पश्चिमी यूपी से लेकर बुंदलेखण्ड, अवध व पूर्वाचल तक
प्रदेश का कोई कोना महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है। अलीगढ़ जिले में पिछले तीन साल में यौन
शोषण, छेड़छाड़, अपहरण और उत्पीड़न के मामले लगभग दोगुने हो गए। गांव-कस्बों में हालात
और भी बदतर हैं। अधिकांश मामले लोकलाज के चलते सामने ही नहीं आ पाते। आगरा जनपद के खंदौली की मुस्कान, तराना और माना का चेहरा आज भी
घरवालों की आंखों के सामने घूमता है। इन तीनों मासूमों की दुराचार के बाद हत्या कर
दी गई थी। इनकी जैसी कई और मासूम भी वहशियों का शिकार बनीं। महिलाओं ने मोर्चा
खोला, विरोध हुआ। आरोपियों को
पकड़ने की मांग हुई। लेकिन आज भी मामला जस का तस।
मेरठ में भी
महिलाओं के साथ अपराध का ग्राफ दिन पर दिन चढ़ रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक
यहां अपहरण व छेड़छाड़ के मामलों की संख्या पिछले साल की अपेक्षा दोगुनी हो गई है।
जिले के शहरी क्षेत्र ही नहीं बल्कि गांवों और कस्बों में भी तीन साल में ये घटनाएं
बढ़ी हैं। बरेली शहर के दस थानों में 2011 में छेड़छाड़ के 21 व अपहरण के 40 से अधिक मामले दर्ज हैं। ऐसे
ही देहात के 19 थानों में छेड़छाड़ के 30 मामले दर्ज किए गए। इलाहाबाद जिले में तीन साल के
अंदर ही छेड़खानी की वारदात पांच गुना तक बढ़ गई है। ये आंकड़ें डराने वाले हैं।
पुलिस प्रशासन की ओर से भी महिलाओं की सुरक्षा के जितने भी उपाय किए जा रहे हैं, उनका असर कागजों से सड़क पर नहीं उतर पा
रहा है। गोरखपुर जिले में पुलिस के
आंकड़े गवाह हैं कि यहां महिलाएं कितनी असुरक्षित हैं। वर्ष 2011 में 22 महिलाओं की हत्या हुई और 46 के संग दुराचार हुआ। नौसढ़
कस्बे में नशे में धुत युवक ने 90 साल की वृद्धा के साथ
बलात्कार करने में गुरेज नहीं किया। हरपुर बुदहट के रामनगर सूरस की मासूम को दो जनवरी
की रात गांव का ही सुभाष प्रसाद (48) उठा ले गया व बलात्कार किया। वाराणसी जिले में महिलाओं ने
अपनी सुरक्षा का भार खुद ही उठा रखा है। पुलिसिया आंकड़ों के मुताबिक तमाम
प्रयासों के बावजूद महिलाओं के खिलाफ वारदात नहीं थम रही हैं।
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