दक्षिण
भारत के सबसे प्राचीन और सम्मानित संगीत वाद्य तंजावुर वीणा को भौगोलिक संकेतन
का दर्जा देने के लिए चुना गया है। भौगोलिक संकेतन पंजीयक,चेन्नई,
चिन्नराजा जी नायडू ने आज यह खुलासा किया कि तंजावुर वीणा को
भौगोलिक संकेतन दर्जे के लिए आवेदन परीक्षण की प्रक्रिया में है तथा भौगोलिक
संकेतन दर्जे के लिए पंजीयन के संबंध में सभी औपचारिकताएं मार्च2013 तक पूरे हो
जाने की संभावना है।सामान्य रूप से वीणा को एक पूर्ण वाद्य यंत्र माना जाता है।
इस एक वाद्य में चार वादन तारों और तीन तंरगित तारों के साथ शास्त्रीय संगीत के
सभी आधारभूत अवयव- श्रुति और लय समाहित हैं। इस तरह की गुणवत्ता वाला कोई अन्य
वाद्य नहीं है। नोबल पुरस्कार विजेता सी.वी. रमन ने वीणा की अद्भुत संरचना वाले
वाद्य के रूप में व्याख्या की थी। इसके तार दोनों अंतिम सिरों पर तीखे कोण के
रूप में नहीं बल्कि गोलाई में हैं। गिटार की तरह इसके तार एकदम गर्दन के सिरे तक
नहीं जाते और इसीलिए बहुत तेज़ आवाज़ पैदा करने की संभावना ही इस वाद्य के साथ
नहीं है। वाद्य के इस डिज़ाइन के कारण किसी अन्य वाद्य के मुकाबले तार के तनाव
पर लागातार नियंत्रण बनाए रखना संभव हो पाता है। वीणा वैदिक काल में उल्लिखित
तीन वैदिक वाद्य यंत्र(बांसूरी और मृदंग)में से एक माना गया है। कला की देवी
सरस्वती को सदैव वीणा के साथ दर्शाया जाता है जो इस बात का प्रतीक है कि
संगीत(वीणा का पर्याय)सभी कलाओं में सबसे श्रेष्ठ है।
तंजावुर की वीणा एक विशेष सीमा तक पुराने हुए जैकवुड पेड़ की
लकड़ी से बनाई जाती है। इस वीणा पर की गई शिल्पकारी और विशेष प्रकार से बनाए गए
अनुनाद परिपथ (कुडम) के कारण भी तंजावुर वीणा अपने में अद्वितीय है। तंजावुर वीणा के
निर्माण में दर्द संवेदना,समय खर्च होता है और
इसमें विशिष्ट शिल्पकारी संलग्न हैं। यह प्राय:जैकुड की लकडी से निर्मित होती
है। इसको रंगों और लकडी के महीन काम से सजाया जाता है, जिसमें
देवी-देवताओं की फूल और पत्तियों की तस्वीरें बनी होती हैं। यह तंजावुर वीना को
देखने में अनुठा और मनमोहक बनाता है।
ऐसा विश्वास किया जाता है कि कालीदास के
काव्य जीवन की शुरूआत सरस्वती के प्रमुख श्लोक‘माणिक्य वीणम उपाललयंथिम’। उनकी नवरत्न माला के
वीणा के पांच संदर्भ हैं-9 छंदों का एक संयोग। तंजावुर वीणा की लंबाई
चार फीट होती है। इस विशाल वाद्य की चौड़ी और मोटी गर्दन के अंत में ड्रैगन के
सिर को तराशा जाता है। गर्दन के भीतर अनुनाद परिपथ (कुडम) बनाया जाता है।
तंजावुर वीणा में 24 आरियां(मेट्टू ) फिट किए गए हैं ताकि इस पर सभी राग बजाए जा
सकें। इन 24 धातू की आरियों को सख्त करने के लिए मधुमक्खी के छत्ते से बने
मोम तथा चारकोल पाउडर के मिश्रण को लपेटा जाता है। दो प्रकार की तंजावुर वीणा
होती है- एकांथ वीणा और सद वीणा।एकांथ वीणा को लकड़ी के एक ही
टुकड़े से बनाया जाता है। जबकि सद वीणा में जोड़ होते हैं। दोनों प्रकार की
वीणा को बहुत खूबसूरती के साथ तराशा जाता है और उस पर रंग किया जाता है।
भारत
सरकार के प्रकाशन प्रभाग से ‘भारत के संगीत वाद्ययंत्र’ शीर्षक से प्रकाशित
(द्वारा एस श्री कृष्णस्वामी1993) पुस्तक कहती है कि तंजावुर के शासक रघुनाथ
नायक और उनके प्रधानमंत्री एवं संगीतज्ञ गोविन्द दीक्षित ने उस समय की वीणा-
सरस्वती वीना-24 तानों के साथ परिष्कृत किया था, जिससे
इस पर सारे राग बजाये जा सके। इसीलिए इसका नाम‘तंजावुर वीना’ है और इसी दिन से
रघुनाथ नायक को तंजावुर वीना का जनक माना जाता है।
यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि वीना के पहले
संस्करण में इससे कम 22 परिवर्तनीय तान थे जिनको व्यवस्थित किया जा सकता था।
तानों के इस समायोजन में ( प्रत्येक सप्तक के लिए12) कर्नाटक संगीत पद्धति की
प्रसिद्ध72 मेलाक्रता रागों के विकास की राह प्रशसत की। इस प्रकार यह कहा जा
सकता है कि कर्नाटक संगीत प्रद्घति तंजावुर वीणा तकनीक के आसपास विकसित हुई है।
यद्यपि भौगोलिक संकेतन
का पंजीयन अनिवार्य नहीं है, लेकिन अतिक्रमण से बचने के लिए यह एक बेहतर
कानूनी सुरक्षा है। भौगोलिक संकेतन का पंजीयन सामान्य रूप से10 वर्ष के लिए
होता है। इस अवधि के बाद अगले 10 वर्ष तक के लिए फिर से पंजीयन कराया जा सकता
है। यदि फिर से 10 वर्ष की अवधि के लिए पंजीयन नहीं कराया जाता है तो वस्तु
विशेष का भौगोलिक संकेतन पंजीयन समाप्त हो जाता है। तंजावुर वीणा के लिए
भौगोलिक संकेतन पंजीयन के लिए आवेदन तंजावुर म्यूजि़कल इंस्ट्रूमेंट वर्कर्स
कॉआपरेटिव कॉटेज इंडस्ट्रीयल सोसाइटी लिमिटेड ने किया जिसे तमिलनाडू राज्य
विज्ञान एवं तकनीक कांउसिल द्वारा समर्थन दिया गया। आवेदन जून 2010 में किया
गया।
तंजावुर वीणा की शिल्पकला
उन शिलपकारों के कारण अद्भुत है जो तंजावुर शहर के आसपास बसे हैं। यह शहर
तमिलनाडू के दक्षिण-पूर्वी तट पर बसे सांस्कृतिक रूप से अद्वितीय और कृषि
आधारित ग्रामीण जिले तंजावुर में स्थित है। 20 वीं सदी के कर्नाटक शैली के एक बहुत
प्रसिद्ध कलाकार जो विशेष तौर पर बेहद मनमोहक तरीके से वीणा वादन के लिए जानी
जाती है। उनकी पहचान वीणा के साथ इस तरह से एकाकार हो गयी है कि उन्हें वीणा
धनाम्मल के नाम से जाना जाता है। पिछले साल डाक विभाग ने उन पर एक डाक टिकट भी
जारी किया।
कराईकुडी बंधु– जिसमें से एक वीणा को
लंब स्थिति में रखकर बजाते हैं- पिछले सालों में सुप्रसिद्ध वीणा वादक हुए हैं।
ईमानी शंकर शास्त्री, दुरईस्वामी अयैंगर, बालाचंद्र,एमके
कल्याण कृष्णा भंगवाथेर, के वेंकटरमण और केरल से
एम उन्नीकृष्णन20 वीं सदी के जाने माने वीणा वादक हुए हैं। वीणा वादन की कला
को21 वी सदी में भी कुछ विशेष कलाकारों द्वारा जिसमें राजकुमार रामवर्मा(त्रावणकौर
शाही परिवार से), गायत्री,अन्नतपदनाभम,डॉ.
जयश्री कुमारेश दूसरे अन्य भी शामिल रहे।
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Sunday, March 3, 2013
दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन और सम्मानित संगीत वाद्य तंजावुर वीणा को भौगोलिक संकेतन का दर्जा मिलेगा
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