गैर
सरकारी संस्था सुलभ इंटरनेशलन ने वृंदावन के मंदिरों में सुबह भजन गाकर जीविका
कमाने वाली विधवा स्त्रियों को सम्मान दिलाने और उनकी मदद करने का बीड़ा उठाया है।वृंदावन में विधवाओं की दशा
में सुधार करने के लिए कई कदम उठाने वाली सामाजिक संगठन सुलभ ने महिलाओं को दी जाने वाली आर्थिक
सहायता बढ़ाने का फैसला किया. देश में स्वच्छता अभियान चलाने वाली प्रमुख गैर
सरकारी संस्था सुलभ ने वृंदावन की विधवाओं की मूलभूत जरूरतों भोजन से लेकर
स्वास्थ्य का ध्यान रखने का फैसला किया है यह जानकारी संस्था के अध्यक्ष बिन्देश्वरी पाठक ने दी . उन्होंने बताया की अब विधवाओ को हर महीने २००० रुपये मासिक दिए जायेंगे और रहने खाने की व्यवस्था मुफ़ है , पाठक ने बताया की विधवाओ को सिलाई बुनाई इत्यादि की भी ट्रेनिंग दी जाएगी इसके आलावा अगरबती बनाना , कपडे सिलना , फूल के माला बनाना मोमबती बनाना , इससे जो आमदनी होगी वोह विधवाओ को दी जाएगी . पाठक ने कहा की वृन्दावन के बाद वे काशी की विधवाओ के लिये भी इस तरह के कार्यकम शूरू करेंगे .
गौरालब है की छह महीने पहले तक वृंदावन में बड़ी संख्या में विधवा स्त्रियां सफेद साड़ी में मंदिरों में भटकते हुए और भीख मांगते देखी जाती थीं। भगवान कृष्ण की नगरी कहे जाने वाले शहर में निर्धन और कुपोषण की शिकार इन विधवाओं में से कई इतनी कमजोर थीं कि सिर्फ हड्डियों और मांस का ढांचा मात्र रह गई थीं।विधवाओं की नगरी के रूप में प्रतिष्ठित शहर में हालांकि अब हालात बदल रहे हैं। वृंदावन निवासी संगीत सम्राट आचार्य जैमिनी ने बताया, "अब आपको शहर के हर कोने और चौक में वृद्ध विधवा स्त्रियां दिखाई नहीं देंगी। सिर्फ दो चार के अलावा जो भीख मांगने की पुरानी आदत छोड़ नहीं पाई। अब सभी विधवाएं आश्रमों में रहती हैं, टीवी देखती हैं, भजन गाती हैं। उनके लिए वहां जीवन की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हैं।" इस बदलाव का बीड़ा उठाने का श्रेय गैर सरकारी संस्था सुलभ इंटरनेशनल को जाता है। संस्था के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक ने रविवार को कहा कि 800 से ज्यादा विधवा महिलाओं का नाम सरकारी विधवा आश्रमों में दर्ज हो चुका है। हर एक को महीने के 2000 रुपये मूलभूत जरूरतों पर खर्च करने को दिए जाते हैं।
गौरालब है की छह महीने पहले तक वृंदावन में बड़ी संख्या में विधवा स्त्रियां सफेद साड़ी में मंदिरों में भटकते हुए और भीख मांगते देखी जाती थीं। भगवान कृष्ण की नगरी कहे जाने वाले शहर में निर्धन और कुपोषण की शिकार इन विधवाओं में से कई इतनी कमजोर थीं कि सिर्फ हड्डियों और मांस का ढांचा मात्र रह गई थीं।विधवाओं की नगरी के रूप में प्रतिष्ठित शहर में हालांकि अब हालात बदल रहे हैं। वृंदावन निवासी संगीत सम्राट आचार्य जैमिनी ने बताया, "अब आपको शहर के हर कोने और चौक में वृद्ध विधवा स्त्रियां दिखाई नहीं देंगी। सिर्फ दो चार के अलावा जो भीख मांगने की पुरानी आदत छोड़ नहीं पाई। अब सभी विधवाएं आश्रमों में रहती हैं, टीवी देखती हैं, भजन गाती हैं। उनके लिए वहां जीवन की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हैं।" इस बदलाव का बीड़ा उठाने का श्रेय गैर सरकारी संस्था सुलभ इंटरनेशनल को जाता है। संस्था के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक ने रविवार को कहा कि 800 से ज्यादा विधवा महिलाओं का नाम सरकारी विधवा आश्रमों में दर्ज हो चुका है। हर एक को महीने के 2000 रुपये मूलभूत जरूरतों पर खर्च करने को दिए जाते हैं।
साल 2012
में सर्वोच्च
न्यायालय के आदेश के बाद यह कदम उठाया गया है। न्यायमूत्र्ति डी.के. जैन और मदन
बी. लोकुर ने उत्तर प्रदेश सरकार को विधवाओं को राशि उपलब्ध कराने के निर्देश जारी
किए हैं।सुलभ इंटरनेशनल ने हालांकि बिना किसी सहयोग के यह पहल की है, पाठक का कहना है कि वह आगे
केंद्र सरकार, राज्य सरकार और कार्पोरेट घरानों से मदद की अपील करेंगे।सुलभ
इंटरनेशनल ने इन महिलाओं को भूखों मरने और भीख मांगने से बचाने के लिए प्रत्येक
महीने दी जाने वाली 1,000 रूपये की वित्तीय सहायता को
बढ़ाकर 2,000 रूपया करने का फैसला किया है. संगठन के संस्थापक बिंदेर
पाठक ने बताया कि इसका उद्देश्य वृंदावन में सरकार संचालित आश्रमों में रह रही विधवाओं
को भूख से बचाने और उन्हें भिक्षावृति से दूर रखना है. उन्होंने बताया कि प्रत्येक महिला को अब 2,000
रूपया
मिलेगा. गौरतलब है कि पिछले साल
वृंदावन के सरकारी आश्रमों में रहने वाली विधवाओं के शवों की दुर्दशा पर उच्चतम
न्यायालय के सख्त आपत्ति जताए जाने पर इस दिशा में सुलभ इंटरनेशनल ने यह कदम उठाया
था.
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