केंद्रीय आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री श्री अजय माकन ने कहा है कि सरकार ने मंत्रालय के जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन के कार्यक्रमों के अंतर्गत आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गों और कम आय वर्ग वाले लोगों के लिए मकान बनाने के वास्ते 41,723करोड़ रुपये की परियोजनाएं स्वीकृत की हैं। नई दिल्ली में राष्ट्रीय संपादक सम्मेलन को संबोधित करते हुए श्री माकन ने बताया कि इनमें से लगभग 10 लाख मकान तैयार हो गए हैं या निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं। इसी प्रकार राजीव आवास योजना के प्रायोगिक चरण में 195 चुने हुए शहरों के लिए स्लम-मुक्त शहरी योजनाओं को अंतिम रूप देने के लिए 100 करोड़ रुपये की राशि रखी गई है। 10मार्च 2013 तक 33शहरों में 32हजार 517 मकानों के निर्माण के लिए 1769 करोड़ रुपये की 40परियोजनाएं मंजूर की जा चुकी हैं।
मंत्रालय की स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना के बारे में श्री माकन ने बताया कि 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 2691 करोड़ रुपये की राशि खर्च की गयी, जिससे 27.37लाख लाभार्थियों को कौशल प्रशिक्षण दिया गया। 2012-13के दौरान 22 मार्च,2013 तक के आंकड़ों के अनुसार राज्यों को 685.62 करोड़ रुपये की राशि जारी की गयी है और अब तक 3.23 लाख लाभार्थियों को कौशल प्रशिक्षण दिया गया है तथा 53,329 लोगों को स्व-रोजगार में सहायता दी गयी। इनके अलावा 29,107 महिलाओं को समूह-उद्यम स्थापित करने में सहायता प्रदान की गयी है।
श्री माकन ने बताया कि शहरों में रोजगार को सुचारू बनाने के लिए मंत्रालय स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना की जगह राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन शुरू करेगा। इस मिशन में दो नई योजनाएं शामिल की गयी हैं – शहरी रेहड़ी खोमचे वालों की सहायता योजना और शहरी बेघरों के लिए आश्रय योजना।12वीं योजना के दौरान राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के अंतर्गत कौशल प्रशिक्षण का लक्ष्य 40 लाख होगा। 12वीं योजना में शहर के बेघर लोगों के लिए 1600आश्रय-आवास बनाए जाएंगे।2013-14 के दौरान 4लाख शहरी गरीब लाभार्थियों को कौशल प्रशिक्षण देने और शहरी बेघर लोगों के लिए आश्रय-आवास बनाने का प्रस्ताव है।
श्री माकन ने कहा कि मंत्रालय ने रियल एस्टेट परियोजनाओं की स्वीकृति प्रक्रियाओं को सुचारू बनाने के लिए श्री धनेन्द्र कुमार की अध्यक्षता में एक समिति बनाई है। समिति ने अपनी रिपोर्ट दे दी है और मंत्रालय देशभर में रियल एस्टेट परियोजनाओं की मंजूरी के लिए एकल खिड़की प्रणाली तैयार कर रहा है, जिससे इस प्रकार की स्वीकृतियों में लगने वाला समय औसत 196 दिन से कम होकर 45-60दिन रह जाएगा। केन्द्र सरकार राज्यों से भी कहेगी कि यदि उन्हें राजीव आवास योजना के अंतर्गत आर्थिक सहायता का लाभ लेना है, तो उन्हें धनेन्द्र कुमार समिति की सिफारिशों को लागू करना होगा।
श्री माकन ने बताया कि मंत्रालय ने राष्ट्रीय आवास बैंक,हुडको, वित्तीय संस्थाओं और बैंकों के साथ-साथ हाल में एक ऋण जोखिम गारंटी कोष ट्रस्ट स्थापित किया है। उम्मीद है कि यह ट्रस्ट आर्थिक द़ष्टि से कमजोर वर्गों और कम आय वर्ग के लोगों के आवासों के लिए60 हजार करोड़ रुपये की राशि जुटाएगा। इन सब उपायों से आश्रयों और मकानों की कमी को काफी हद तक पूरा किया जा सकेगा।
मंत्रालय की अन्य नई पहलों का जिक्र करते हुए श्री माकन ने कहा कि देश में स्लम बस्तियों में सुधार का समय-समय पर आकलन करने के लिए मंत्रालय ने एक स्लम उन्नयन सूचकांक प्रणाली तैयार करने का फैसला किया है। इस बारे में तौर तरीके सुझाने के लिए मंत्रालय एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति बनाएगा।
वित्त मंत्री के बजट भाषण में घोषित शहरी आवास कोष के बारे में श्री माकन ने बताया कि उचित कीमत के आवासों के निर्माण के लिए ऋण उपलब्ध कराने के वास्ते दो हजार करोड़ रुपये का एक अलग कोष बनाया जाएगा, जिसका संचालन राष्ट्रीय आवास बैंक द्वारा किया जाएगा। आर्थिक द़ष्टि से कमजोर वर्गों और कम आय वर्ग के लोगों को 25 लाख की ऋण सीमा का लाभ नहीं मिलता है,इसलिए मंत्रालय ने ऋण की सीमा 8लाख करने और आवासीय इकाई की लागत 12-15 लाख करने का फैसला किया है।
श्री माकन ने यह भी घोषणा की कि उनका मंत्रालय रिजर्व बैंक के साथ मिलकर जल्दी ही आवास प्रारंभ सूचकांक की प्रणाली शुरू करेगा। इस समय यह प्रणाली केवल 6 देशों-कनाडा, अमरीका,जापान,फ्रांस, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में है। यह प्रणाली आवास निर्माण की अनुमति और आवास निर्माण प्रारंभ के बारे में जानकारी इकट्ठी करेगी,जो एक प्रकार का आर्थिक सूचकांक होगा। इस सूचकांक की सहायता से नियमित आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था के सिलसिले में आवास और इससे संबद्ध क्षेत्रों की गतिविधियों की निगरानी हो सकेगी। मंत्रालय रिजर्व बैंक के साथ मिलकर जल्दी ही प्रायोगिक आधार पर इस प्रणाली को जारी करेगा।
शहरों में रेहड़ी खोमचा वालों के अधिकारों की रक्षा और उनकी गतिविधियों को नियमित करने के बारे में6 सितम्बर, 2012 को एक विधेयक पेश किया गया था। संसद की स्थाई समिति ने इस पर अपनी रिपोर्ट दे दी है और मंत्रालय जल्दी ही केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सामने रेहड़ी खोमचे वालों के लिए लाभकारी प्रारूप विधेयक रखेगा।
श्री माकन ने कहा कि रियल एस्टेट के संबंध में एक जैसी नियामक प्रणाली लाने के लिए मंत्रालय ने सभी संबद्ध पक्षों के साथ परामर्श करके रियल एस्टेट(नियमन एवं विकास) विधेयक2012 का प्रारूप तैयार किया था। इस प्रारूप में विवादों को सुलझाने के प्रावधान भी रखे गए हैं। संसद में रखने से पहले इसे जल्दी ही केन्द्रीय मंत्रिमंडल के विचार के लिए प्रस्तुत किए जाने की संभावना है।
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Sunday, March 24, 2013
सरकार ने 10मार्च 2013 तक 40परियोजनाएं मंजूर की . माकन
दिल्ली तेरे रूप अनेक ,
देश की राजधानी दिल्ली में बीते समय में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं आमतौर पर यह कहा जाता है कि यह शहर कई बार उजड़ा और कई बार बसाया गया इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि अलग-अलग सल्तनतों के दौरा नदिल्ली के सात शहर अलग-अलग नाम से बसाए गए। दिल्ली के सात शहरों का यह तथ्य अब पुराना हो चला है। अगर कोई बारीकी से दिल्ली के स्वरूप को देखे तो दिल्ली में15 शहरों की गिनती कर सकता है। दिल्ली में आकर आक्रमण करने वाले शासक जीत हासिल कर इसे राजधानी बनाकर शासन चलाया करते थे। इस तरह दिल्ली को राजधानी बनाने का उनका सपना साकार होता था। दूर-दूर के देशों से और दूर-दराज के देशों से कई शासक आए और यहां आकर बस गए। उन्होंने इस ऐतिहासिक शहर को राजधानी बनाने का ऐलान किया। इसका एक मात्र अपवाद 14वीं के बादशाह मो. तुगलक थे जो अपनी राजधानी पुणे के निकट दिल्ली से 700 किलोमीटर दूर दौलताबाद में ले गए। बाद में उन्हें इसका पछतावा हुआ। वर्तमान दिल्ली महानगर में पुरातन काल के शहर, उनके अवशेष,लुटियन दिल्ली और आजादी के बाद की एक प्रकार की विशेषता की कॉलोनियों से अलग-अलग शामिल हैं। दिल्ली अलग-अलग शहरों का मिश्रण होते हुए अपनी मिलीजुली तहजीब, अनुठे बुनियादी ढांचे, रोजगार के अवसर और अपने ऐतिहासिक और पर्यटन महत्व के स्मारकों और तेजी से बदलती तस्वीर और छवि की वजह से अब भी सब के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यह महूसूस किया जाता है किदिल्ली में अलग-अलग आकार और स्वरूप के अलग-अलग15 शहर पुरातन, ऐतिहासिक और तेजी से आधुनिक बन रहे शहर दिल्ली के अभिन्न अंग बने हुए हैं।
दिल्ली के पहले पुरातन राजसी शहर को धार्मिक ग्रंथ महाभारत में इंद्रप्रस्थ के नाम से बताया गया है। इस ग्रंथ में पांडवों द्वारा मांगे गए तब के पांच गांवों- पानीपत,सोनीपत, तिलपत,मारीपत, बागपत और यमुना नदी के तट पर बसे पहले दिल्ली इन्द्रप्रस्थ से कुछ दूर कुरूक्षेत्र का भी उल्लेख है। हजारों वर्ष पहले कौरवों ने इस शहर को बनाया लेकिन अब इसके अवशेष दिखाई नहीं देते। इसके बाद के बसे पहले के सभी शहर राजा महाराजाओं की पसंद और डिजाइन के अनुरूप बनाए गए किले के आसपास बसे थे। वर्तमान दिल्ली के दक्षिण में पहला शहर लालकोट बना। इसे तोमर नरेश अंग पाल ने विकसित किया। इस शहर को दिल्ली का पहला लालकिला भी कहा जाता है। माना जाता है की लालकोट का र्निमाण1050 में किया गया। इस किले के कई द्वार थे जिनमें से गजनी गेट, सोहन गेट, रंजीत गेट शामिल थे। दिल्ली का तीसरा शहर भी दक्षिण में था जिसे किला राय पिथौरा कहा गया। महरौली के निकट लालकोट और किला राय पिथौरा आज भी अपने वैभव का सबूत दे रहे हैं। दिल्ली में बलशाली चौहान राजपूतों के प्रवेश के समय पृथ्वी राज चौहान ने राजकोट पर नियंत्रण किया और इसका विस्तार किया। उन्हीं के नाम पर 12वी शताब्दी का यह शहर भी बसा। इसके भी 13 दरवाजे थे। समझा जाता है किका अंक राजा के लिए अशुभ साबित हुआ और उसका राज्य बिखर गया।
चौथा शहर भी दक्षिण में बसा। अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 में मंगोलो से अपने राज्य की रक्षा के लिए सिरी किले का निर्माण कराया। कहा जाता है किइस शहर को मुस्लिम समुदाय ने बनाया और इसकी कल्पना की। शाहपुरजठ गांव के आसपास इस शहर के अवशेष अब भी मिलते हैं। पांचवा शहर भी दक्षिण में बसाया गया लेकिन यह पहले के शहरों से दक्षिण में कुछ दूरी में था। तुगलकाबाद किला बदरपुर और तुगलकाबाद शूटिग रेंज के पास है। इसका निर्माण1320 के आसपास ग्यासुद्दीन तुगलक के शासनकाल के दौरान किया गया। दिल्ली का छठा शहर जहापनाह चिराग गांव के निकट था। जहापनाह के नाम पर इस गांव के आसपास एक वन विकसित किया गया। मोहम्मद बिन तुगलक ने इस शहर पर 1325 से 1351 तक शासन किया। मगर सातंवा शहर मध्य दिल्ली में था। इस शहर को आज की पीढ़ी फिरोजशाह कोटला के नाम से जानती है। यह स्थान फिरोजशाह कोटला क्रिकेट मैदान से भी मशहूर है। फिरोजशाह तुगलक ने इस किले का निर्माण किया और यहां से 1351 से1388 तक चलाया। दिल्ली के आठवें और नौवें शहर मथुरा रोड,चिड़ियाघर और काका नगर के आसपास ऐतिहासिक घटनाओं के साक्षी बने थे। शेरगढ़ यानी पुराना किला शहर हुमायू का दीनपनाह मथुरा रोड पर आमने सामने विकसित हुए। शेरशाह सूरी ने आठवें शहर शेरगढ़ को बसाया। शेरशह सूरी को वर्तमान जीटी रोड का निर्माता बताया जाता है। नौवा शहर दीनपनाह हुमायू ने बनवाया।
दसवां शहर शाहजहानबाद बहुत प्रसिद्ध है क्योंकिइसके पुराने गौरव को लौटाने की चर्चा अकसर की जाती है। आजादी से पहले अंग्रेजों ने नई दिल्ली बसाई। लुटियन मशहूर वास्तुकार लुटियन ने इसकी कल्पना की और इसका निर्माण1911 से 1947 के बीच किया गया। देश्के विभाजन के बाद पाकिस्तान से आए लाखों शरर्णाथियों को बसाने के लिए12वीं दिल्ली बसाई गई। कुछ शरर्णाथियों के कुछ अस्थायी आश्रय अब महल जैसे घर लगते हैं। डीडीए ने 13वीं दिल्ली विकसित की। इसके अंतर्गत कई कॉलोनियां और द्वारिका,रोहिणी और नरेला से उपनगर बसाएं।14वीं दिल्ली में अनधिकृत कॉलोनियां और स्लम बस्तियों का समूह शामिल है। 15वीं दिल्ली सहकारी आवास सोसाइटियों की दिल्ली है जिसमें आसमान की और निगाह ताने बहुमंजिले आवास बने हैं। दिल्ली में 16वां शहर बसाने के लिए अब जगह नहीं रही। अगर कहीं 16वीं दिल्ली बनी तो वह आसमान में लटकती हुई दिल्ली होगी।
Sunday, March 10, 2013
सुलभ इंटरनेशलन ने वृंदावन की विधवाओं का बीड़ा उठाया
गैर
सरकारी संस्था सुलभ इंटरनेशलन ने वृंदावन के मंदिरों में सुबह भजन गाकर जीविका
कमाने वाली विधवा स्त्रियों को सम्मान दिलाने और उनकी मदद करने का बीड़ा उठाया है।वृंदावन में विधवाओं की दशा
में सुधार करने के लिए कई कदम उठाने वाली सामाजिक संगठन सुलभ ने महिलाओं को दी जाने वाली आर्थिक
सहायता बढ़ाने का फैसला किया. देश में स्वच्छता अभियान चलाने वाली प्रमुख गैर
सरकारी संस्था सुलभ ने वृंदावन की विधवाओं की मूलभूत जरूरतों भोजन से लेकर
स्वास्थ्य का ध्यान रखने का फैसला किया है यह जानकारी संस्था के अध्यक्ष बिन्देश्वरी पाठक ने दी . उन्होंने बताया की अब विधवाओ को हर महीने २००० रुपये मासिक दिए जायेंगे और रहने खाने की व्यवस्था मुफ़ है , पाठक ने बताया की विधवाओ को सिलाई बुनाई इत्यादि की भी ट्रेनिंग दी जाएगी इसके आलावा अगरबती बनाना , कपडे सिलना , फूल के माला बनाना मोमबती बनाना , इससे जो आमदनी होगी वोह विधवाओ को दी जाएगी . पाठक ने कहा की वृन्दावन के बाद वे काशी की विधवाओ के लिये भी इस तरह के कार्यकम शूरू करेंगे .
गौरालब है की छह महीने पहले तक वृंदावन में बड़ी संख्या में विधवा स्त्रियां सफेद साड़ी में मंदिरों में भटकते हुए और भीख मांगते देखी जाती थीं। भगवान कृष्ण की नगरी कहे जाने वाले शहर में निर्धन और कुपोषण की शिकार इन विधवाओं में से कई इतनी कमजोर थीं कि सिर्फ हड्डियों और मांस का ढांचा मात्र रह गई थीं।विधवाओं की नगरी के रूप में प्रतिष्ठित शहर में हालांकि अब हालात बदल रहे हैं। वृंदावन निवासी संगीत सम्राट आचार्य जैमिनी ने बताया, "अब आपको शहर के हर कोने और चौक में वृद्ध विधवा स्त्रियां दिखाई नहीं देंगी। सिर्फ दो चार के अलावा जो भीख मांगने की पुरानी आदत छोड़ नहीं पाई। अब सभी विधवाएं आश्रमों में रहती हैं, टीवी देखती हैं, भजन गाती हैं। उनके लिए वहां जीवन की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हैं।" इस बदलाव का बीड़ा उठाने का श्रेय गैर सरकारी संस्था सुलभ इंटरनेशनल को जाता है। संस्था के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक ने रविवार को कहा कि 800 से ज्यादा विधवा महिलाओं का नाम सरकारी विधवा आश्रमों में दर्ज हो चुका है। हर एक को महीने के 2000 रुपये मूलभूत जरूरतों पर खर्च करने को दिए जाते हैं।
गौरालब है की छह महीने पहले तक वृंदावन में बड़ी संख्या में विधवा स्त्रियां सफेद साड़ी में मंदिरों में भटकते हुए और भीख मांगते देखी जाती थीं। भगवान कृष्ण की नगरी कहे जाने वाले शहर में निर्धन और कुपोषण की शिकार इन विधवाओं में से कई इतनी कमजोर थीं कि सिर्फ हड्डियों और मांस का ढांचा मात्र रह गई थीं।विधवाओं की नगरी के रूप में प्रतिष्ठित शहर में हालांकि अब हालात बदल रहे हैं। वृंदावन निवासी संगीत सम्राट आचार्य जैमिनी ने बताया, "अब आपको शहर के हर कोने और चौक में वृद्ध विधवा स्त्रियां दिखाई नहीं देंगी। सिर्फ दो चार के अलावा जो भीख मांगने की पुरानी आदत छोड़ नहीं पाई। अब सभी विधवाएं आश्रमों में रहती हैं, टीवी देखती हैं, भजन गाती हैं। उनके लिए वहां जीवन की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हैं।" इस बदलाव का बीड़ा उठाने का श्रेय गैर सरकारी संस्था सुलभ इंटरनेशनल को जाता है। संस्था के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक ने रविवार को कहा कि 800 से ज्यादा विधवा महिलाओं का नाम सरकारी विधवा आश्रमों में दर्ज हो चुका है। हर एक को महीने के 2000 रुपये मूलभूत जरूरतों पर खर्च करने को दिए जाते हैं।
साल 2012
में सर्वोच्च
न्यायालय के आदेश के बाद यह कदम उठाया गया है। न्यायमूत्र्ति डी.के. जैन और मदन
बी. लोकुर ने उत्तर प्रदेश सरकार को विधवाओं को राशि उपलब्ध कराने के निर्देश जारी
किए हैं।सुलभ इंटरनेशनल ने हालांकि बिना किसी सहयोग के यह पहल की है, पाठक का कहना है कि वह आगे
केंद्र सरकार, राज्य सरकार और कार्पोरेट घरानों से मदद की अपील करेंगे।सुलभ
इंटरनेशनल ने इन महिलाओं को भूखों मरने और भीख मांगने से बचाने के लिए प्रत्येक
महीने दी जाने वाली 1,000 रूपये की वित्तीय सहायता को
बढ़ाकर 2,000 रूपया करने का फैसला किया है. संगठन के संस्थापक बिंदेर
पाठक ने बताया कि इसका उद्देश्य वृंदावन में सरकार संचालित आश्रमों में रह रही विधवाओं
को भूख से बचाने और उन्हें भिक्षावृति से दूर रखना है. उन्होंने बताया कि प्रत्येक महिला को अब 2,000
रूपया
मिलेगा. गौरतलब है कि पिछले साल
वृंदावन के सरकारी आश्रमों में रहने वाली विधवाओं के शवों की दुर्दशा पर उच्चतम
न्यायालय के सख्त आपत्ति जताए जाने पर इस दिशा में सुलभ इंटरनेशनल ने यह कदम उठाया
था.
अहिंसा दूत के रूप में भूमिका पर में 65 ग्राम सभाओं की महिला सरपंचों ने भाग लिया
महिलाओं की सुरक्षा में महिला पंचायती राज सदस्यों और युवाओं की अहिंसा दूत के रूप में भूमिका पर में 65 ग्राम सभाओं की महिला सरपंचों ने भाग लिया और पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भूमिका पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यह समाज और राष्ट्र के लिए महिलाओं के योगदान को याद करने का अवसर है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव श्री प्रेम नारायण ने 'महिलाओं की सुरक्षा में महिला पंचायती राज सदस्यों और युवाओं की अहिंसा दूत के रूप में भूमिका' पर पैनल चर्चा की अध्यक्षता की जिसका आयोजन मंत्रालय ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर किया था। सेमिनार में 65 ग्राम सभाओं की महिला सरपंचों ने भाग लिया। श्री नारायण ने इस अवसर पर अपने संबोधन में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भूमिका पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यह समाज और राष्ट्र के लिए महिलाओं के योगदान को याद करने का अवसर है। संविधान के 73वें और 74वें संशोधन ने दस लाख से अधिक महिलाओं का सशक्तिकरण किया है। आज 55 प्रतिशत से अधिक महिलाएं पंचायतों और स्थानीय शहरी निकायों में विभिन्न स्तर पर प्रतिनिधित्व कर रही हैं जो 33 प्रतिशत के लक्ष्य से अधिक है। उन्होंने एकीकृत बाल विकास और मनरेगा जैसी योजनाओं में पंचायत कीचर्चा में जाने-माने पैनलिस्टों ने भाग लिया। महिलाओं पर अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्र, नई दिल्ली की सुश्री नंदिता भाटला ने 'महिलाओं के खिलाफ हिंसा के बारे में जागरूकता में युवाओं की भूमिका', महिलाओं के विशेष पुलिस यूनिट की अतिरिक्त डीसीपी सुश्री सुमन नलवा ने 'महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में पुलिस की भूमिका' और राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य सुश्री चारू वली खन्ना ने 'महिलाओं की सुरक्षा में राष्ट्रीय और राज्य महिला आयोगों की भूमिका' के बारे में अपने विचार रखे।
पंचायती राज पर एक नजर
पंचायती राज पर एक नजर
पंचायती राज का दर्शन ग्रामीण भारत की परंपरा और संस्कृति में गहरे जमा हुआ है। यह ग्राम स्तर पर स्वशासन की प्रणाली की व्यवस्था करता है; पर 1992 तक इसे कोई संबैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं था।
23 अप्रैल, 1993 भारत में पंचायती राज के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मार्गचिन्ह था क्योंकि इसी दिन संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संबैधानिक दर्जा हासिल कराया गया और इस तरह महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के स्वप्न को वास्तविकता में बदलने की दिशा में कदम बढ़ाया गया था।
73वें संशोधन अधिनियम, 1992 में निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं:
ग्राम सभा किसी एक गांव या पंचायत का चुनाव करने वाले गांवों के समूह की मतदाता सूची में शामिल व्यक्तियों से मिलकर बनी संस्था है।
गतिशील और प्रबुध्द ग्राम सभा पंचायती राज की सफलता के केंद्र में होती है। राज्य सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे:-
23 अप्रैल, 1993 भारत में पंचायती राज के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मार्गचिन्ह था क्योंकि इसी दिन संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संबैधानिक दर्जा हासिल कराया गया और इस तरह महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के स्वप्न को वास्तविकता में बदलने की दिशा में कदम बढ़ाया गया था।
73वें संशोधन अधिनियम, 1992 में निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं:
- एक त्रि-स्तरीय ढांचे की स्थापना (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति या मध्यवर्ती पंचायत तथा जिला पंचायत)
- ग्राम स्तर पर ग्राम सभा की स्थापना
- हर पांच साल में पंचायतों के नियमित चुनाव
- अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण
- महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण
- पंचायतों की निधियों में सुधार के लिए उपाय सुझाने हेतु राज्य वित्ता आयोगों का गठन
- राज्य चुनाव आयोग का गठन
- संविधान की गयारहवीं अनुसूची में सूचीबध्द 29 विषयों के संबंध में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करना और उनका निष्पादन करना
- कर, डयूटीज, टॉल, शुल्क आदि लगाने और उसे वसूल करने का पंचायतों को अधिकार
- राज्यों द्वारा एकत्र करों, डयूटियों, टॉल और शुल्कों का पंचायतों को हस्तांतरण
ग्राम सभा किसी एक गांव या पंचायत का चुनाव करने वाले गांवों के समूह की मतदाता सूची में शामिल व्यक्तियों से मिलकर बनी संस्था है।
गतिशील और प्रबुध्द ग्राम सभा पंचायती राज की सफलता के केंद्र में होती है। राज्य सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे:-
- पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 में उल्लिखित प्रावधानों के अनुसार ग्राम सभा को शक्तियां प्रदान करें।
- गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अवसर पर देश भर में ग्राम सभा की बैठकों के आयोजन के लिए पंचायती राज कानून में अनिवार्य प्रावधान शामिल करना।
- पंचायती राज अधिनियम में ऐसा अनिवार्य प्रावधान जोड़ना जो विशेषकर ग्राम सभा की बैठकों के कोरम, सामान्य बैठकों और विशेष बैठकों तथा कोरम पूरा न हो पाने के कारण फिर से बैठक के आयोजन के संबंध में हो।
- ग्राम सभा के सदस्यों को उनके अधिकारों और शक्तियों से अवगत कराना ताकि जन भागीदारी सुनिश्चित हो और विशेषकर महिलाओं तथा अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों जैसे सीमांतीकृत समूह भाग ले सकें।
- ग्राम सभा के लिए ऐसी कार्य-प्रक्रियाएं बनाना जिनके द्वारा वह ग्राम विकास मंत्रालय के लाभार्थी-उन्मुख विकास कार्यक्रमों का असरकारी ढंग़ से सामाजिक ऑडिट सुनिश्चित कर सके तथा वित्तीय कुप्रबंधन के लिए वसूली या सजा देने के कानूनी अधिकार उसे प्राप्त हो सकें।
- ग्राम सभा बैठकों के संबंध में व्यापक प्रसार के लिए कार्य-योजना बनाना।
- ग्राम सभा की बैठकों के आयोजन के लिए मार्ग-निर्देश/कार्य-प्रक्रियाएं तैयार करना।
- प्राकृतिक संसाधनों, भूमि रिकार्डों पर नियंत्रण और समस्या-समाधान के संबंध में ग्राम सभा के अधिकारों को लेकर जागरूकता पैदा करना।
- ग्राम स्तर पर जन विकास कार्यों और उनके रख-रखाव की योजना बनाना और उन्हें पूरा करना।
- ग्राम स्तर पर लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना, इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, समुदाय भाईचारा, विशेषकर जेंडर और जाति-आधारित भेदभाव के संबंध में सामाजिक न्याय, झगड़ों का निबटारा, बच्चों का विशेषकर बालिकाओं का कल्याण जैसे मुद्दे होंगे।
Sunday, March 3, 2013
दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन और सम्मानित संगीत वाद्य तंजावुर वीणा को भौगोलिक संकेतन का दर्जा मिलेगा
दक्षिण
भारत के सबसे प्राचीन और सम्मानित संगीत वाद्य तंजावुर वीणा को भौगोलिक संकेतन
का दर्जा देने के लिए चुना गया है। भौगोलिक संकेतन पंजीयक,चेन्नई,
चिन्नराजा जी नायडू ने आज यह खुलासा किया कि तंजावुर वीणा को
भौगोलिक संकेतन दर्जे के लिए आवेदन परीक्षण की प्रक्रिया में है तथा भौगोलिक
संकेतन दर्जे के लिए पंजीयन के संबंध में सभी औपचारिकताएं मार्च2013 तक पूरे हो
जाने की संभावना है।सामान्य रूप से वीणा को एक पूर्ण वाद्य यंत्र माना जाता है।
इस एक वाद्य में चार वादन तारों और तीन तंरगित तारों के साथ शास्त्रीय संगीत के
सभी आधारभूत अवयव- श्रुति और लय समाहित हैं। इस तरह की गुणवत्ता वाला कोई अन्य
वाद्य नहीं है। नोबल पुरस्कार विजेता सी.वी. रमन ने वीणा की अद्भुत संरचना वाले
वाद्य के रूप में व्याख्या की थी। इसके तार दोनों अंतिम सिरों पर तीखे कोण के
रूप में नहीं बल्कि गोलाई में हैं। गिटार की तरह इसके तार एकदम गर्दन के सिरे तक
नहीं जाते और इसीलिए बहुत तेज़ आवाज़ पैदा करने की संभावना ही इस वाद्य के साथ
नहीं है। वाद्य के इस डिज़ाइन के कारण किसी अन्य वाद्य के मुकाबले तार के तनाव
पर लागातार नियंत्रण बनाए रखना संभव हो पाता है। वीणा वैदिक काल में उल्लिखित
तीन वैदिक वाद्य यंत्र(बांसूरी और मृदंग)में से एक माना गया है। कला की देवी
सरस्वती को सदैव वीणा के साथ दर्शाया जाता है जो इस बात का प्रतीक है कि
संगीत(वीणा का पर्याय)सभी कलाओं में सबसे श्रेष्ठ है।
तंजावुर की वीणा एक विशेष सीमा तक पुराने हुए जैकवुड पेड़ की
लकड़ी से बनाई जाती है। इस वीणा पर की गई शिल्पकारी और विशेष प्रकार से बनाए गए
अनुनाद परिपथ (कुडम) के कारण भी तंजावुर वीणा अपने में अद्वितीय है। तंजावुर वीणा के
निर्माण में दर्द संवेदना,समय खर्च होता है और
इसमें विशिष्ट शिल्पकारी संलग्न हैं। यह प्राय:जैकुड की लकडी से निर्मित होती
है। इसको रंगों और लकडी के महीन काम से सजाया जाता है, जिसमें
देवी-देवताओं की फूल और पत्तियों की तस्वीरें बनी होती हैं। यह तंजावुर वीना को
देखने में अनुठा और मनमोहक बनाता है।
ऐसा विश्वास किया जाता है कि कालीदास के
काव्य जीवन की शुरूआत सरस्वती के प्रमुख श्लोक‘माणिक्य वीणम उपाललयंथिम’। उनकी नवरत्न माला के
वीणा के पांच संदर्भ हैं-9 छंदों का एक संयोग। तंजावुर वीणा की लंबाई
चार फीट होती है। इस विशाल वाद्य की चौड़ी और मोटी गर्दन के अंत में ड्रैगन के
सिर को तराशा जाता है। गर्दन के भीतर अनुनाद परिपथ (कुडम) बनाया जाता है।
तंजावुर वीणा में 24 आरियां(मेट्टू ) फिट किए गए हैं ताकि इस पर सभी राग बजाए जा
सकें। इन 24 धातू की आरियों को सख्त करने के लिए मधुमक्खी के छत्ते से बने
मोम तथा चारकोल पाउडर के मिश्रण को लपेटा जाता है। दो प्रकार की तंजावुर वीणा
होती है- एकांथ वीणा और सद वीणा।एकांथ वीणा को लकड़ी के एक ही
टुकड़े से बनाया जाता है। जबकि सद वीणा में जोड़ होते हैं। दोनों प्रकार की
वीणा को बहुत खूबसूरती के साथ तराशा जाता है और उस पर रंग किया जाता है।
भारत
सरकार के प्रकाशन प्रभाग से ‘भारत के संगीत वाद्ययंत्र’ शीर्षक से प्रकाशित
(द्वारा एस श्री कृष्णस्वामी1993) पुस्तक कहती है कि तंजावुर के शासक रघुनाथ
नायक और उनके प्रधानमंत्री एवं संगीतज्ञ गोविन्द दीक्षित ने उस समय की वीणा-
सरस्वती वीना-24 तानों के साथ परिष्कृत किया था, जिससे
इस पर सारे राग बजाये जा सके। इसीलिए इसका नाम‘तंजावुर वीना’ है और इसी दिन से
रघुनाथ नायक को तंजावुर वीना का जनक माना जाता है।
यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि वीना के पहले
संस्करण में इससे कम 22 परिवर्तनीय तान थे जिनको व्यवस्थित किया जा सकता था।
तानों के इस समायोजन में ( प्रत्येक सप्तक के लिए12) कर्नाटक संगीत पद्धति की
प्रसिद्ध72 मेलाक्रता रागों के विकास की राह प्रशसत की। इस प्रकार यह कहा जा
सकता है कि कर्नाटक संगीत प्रद्घति तंजावुर वीणा तकनीक के आसपास विकसित हुई है।
यद्यपि भौगोलिक संकेतन
का पंजीयन अनिवार्य नहीं है, लेकिन अतिक्रमण से बचने के लिए यह एक बेहतर
कानूनी सुरक्षा है। भौगोलिक संकेतन का पंजीयन सामान्य रूप से10 वर्ष के लिए
होता है। इस अवधि के बाद अगले 10 वर्ष तक के लिए फिर से पंजीयन कराया जा सकता
है। यदि फिर से 10 वर्ष की अवधि के लिए पंजीयन नहीं कराया जाता है तो वस्तु
विशेष का भौगोलिक संकेतन पंजीयन समाप्त हो जाता है। तंजावुर वीणा के लिए
भौगोलिक संकेतन पंजीयन के लिए आवेदन तंजावुर म्यूजि़कल इंस्ट्रूमेंट वर्कर्स
कॉआपरेटिव कॉटेज इंडस्ट्रीयल सोसाइटी लिमिटेड ने किया जिसे तमिलनाडू राज्य
विज्ञान एवं तकनीक कांउसिल द्वारा समर्थन दिया गया। आवेदन जून 2010 में किया
गया।
तंजावुर वीणा की शिल्पकला
उन शिलपकारों के कारण अद्भुत है जो तंजावुर शहर के आसपास बसे हैं। यह शहर
तमिलनाडू के दक्षिण-पूर्वी तट पर बसे सांस्कृतिक रूप से अद्वितीय और कृषि
आधारित ग्रामीण जिले तंजावुर में स्थित है। 20 वीं सदी के कर्नाटक शैली के एक बहुत
प्रसिद्ध कलाकार जो विशेष तौर पर बेहद मनमोहक तरीके से वीणा वादन के लिए जानी
जाती है। उनकी पहचान वीणा के साथ इस तरह से एकाकार हो गयी है कि उन्हें वीणा
धनाम्मल के नाम से जाना जाता है। पिछले साल डाक विभाग ने उन पर एक डाक टिकट भी
जारी किया।
कराईकुडी बंधु– जिसमें से एक वीणा को
लंब स्थिति में रखकर बजाते हैं- पिछले सालों में सुप्रसिद्ध वीणा वादक हुए हैं।
ईमानी शंकर शास्त्री, दुरईस्वामी अयैंगर, बालाचंद्र,एमके
कल्याण कृष्णा भंगवाथेर, के वेंकटरमण और केरल से
एम उन्नीकृष्णन20 वीं सदी के जाने माने वीणा वादक हुए हैं। वीणा वादन की कला
को21 वी सदी में भी कुछ विशेष कलाकारों द्वारा जिसमें राजकुमार रामवर्मा(त्रावणकौर
शाही परिवार से), गायत्री,अन्नतपदनाभम,डॉ.
जयश्री कुमारेश दूसरे अन्य भी शामिल रहे।
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Saturday, March 2, 2013
कृषि मे नई पहल - राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड ) के अभियान
कृषि में नई पहल- राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के अभियान |
कुछ समय पहले मदुरई जिले के पश्चिमी हिस्से के गांव में तैनात अधिकारियों ने महिला स्वास्थ्य केन्द्र के प्रबंधन की जिम्मेदारी पडोस के रज्जुकर किसान क्लब को सौंपी। मदुरई जिले के मेलूर ब्लॉक के लक्ष्मीपुरम स्थित यह क्लब स्थानीय स्कूल के गरीब बच्चों को हर साल किताबें बांट रहा है। जिले के वैगई विवासाइगलसंघम के किसान क़ृषि संबंधी कार्यक्रम राज्य के विभिन्न हिस्सों में चला रहे हैं। यह सब राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा देश के गांव में चलाए जा रहे अभियान के तहत हुआ। किसान क्लब की अवधारणा नाबार्ड समर्थित है और इसका नारा एक गांव में किसानों का एक क्लब है। इसके तहत प्रगतिशील किसान क्लब के झंडे तले एकत्रित होते हैं। नाबार्ड तीन वर्षों तक इन क्लबों को किसानी के प्रगतिशील तौर-तरीके संबंधी प्रशिक्षण और कृषि संबंधी यात्राओं के लिए राशि उपलब्ध कराता ह .मदुरई जिले के विभिन्न गावों में अभी 170 किसान क्लब काम कर रहे हैं। इन क्लबों में सर्वाधिक सफल किसान हैं उत्थापनीकनूर के किसान। किसान चमेली उगाते हैं। नाबार्ड ने इस क्लब को इंडियन बैंक की साझेदारी में 30 क्लबों में शुमार किया है। एक कदम बढकर इन क्लबों ने एक फेडरेशन बनाया है जिसका नाम है उत्थापनीकनूर फलावर ग्रोअर फेडरेशन। जास्मीन उगाने वाले किसान चाहते हैं कि वे स्वयं अपना बाजार चलाएं। किसान इसके लिए जिला प्रशासन से समर्थन चाहते हैं और सिद्धांत रूप में उन्हें जमीन देने की मंजूरी भी दी गई है नाबार्ड ने मदुरई जिले के अलंगनाल्लानूर के सहकारिता क्षेत्र की प्राथमिक कृषि सहयोग समितियां को इस तरह के क्लब बनाने की मंजूरी दी है। हाल में अलंगनाल्लानूर ब्लॉक में परीपेट्टी किसान क्लब और देवासेरी किसान क्लब के लिए ओरिएंटेशन कार्यक्रम चलाया गया। नाबार्ड के एजीएम श्री शंकर नारायण की राय है कि किसान वैल्यू चैन की बारीकियों को पूरी तरह समझें। इससे उन्हें लाभ होगा और वे किसान क्लब को परिवर्तन एजेंट समझ लाभ की ओर बढ सकते हैं। उन्हें नवीनतम टेक्नॉलोजी के बारे में जानकारी मिल सकेगी, विशेषज्ञों की मदद ले सकेंगे और अतंत: अपने पेशे में निपुण हो जाएंगे।
उन्होंने बताया कि नाबार्ड अपने किसान टेक्नॉलोजी ट्रांसफर फंड के जरिए किसानों के प्रशिक्षण कार्यक्रम, डेमोप्लॉट का विकास और कृषि ज्ञान के लिए किसानों की यात्राओं जैसे प्रयासों का पूरा खर्च वहन करेगा। उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में आम और अमरूद के पौधे लगाने के लिए गम्भीर प्रयास किए जाएंगे। नाबार्ड किसान क्लब के लिए हर तीन साल पर दस हजार रूपये की राशि आबंटित करता है। तीन साल बाद किसान क्लब से जुडे लोगों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे वैसी छोटी-छोटी बचत करें जिनसे रोजाना के खर्च पूरा हो सकें और जरूरत पडने पर एक-दूसरे को ऋण भी दे सके. किसान क्लब कार्यक्रम के तहत किसानों को तीन सालों के लिए वार्षिक रख-रखाव ग्रांट भी मिलता है। किसान तमिलनाडु में प्रशिक्षण के लिए कार्यक्रमों में शामिल हो सकते हैं (पुड्डुकोटई, कोयम्बटूर, त्रिची और कांचीपूरम किसान ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए चुने गए हैं। किसानों को इस कार्यक्रम के तहत रायटर मार्केट लाइट लिमिटेड के जरिए स्थानीय भाषा में एसएमएस एलर्ट भी हासिल होते हैं। जल प्रबंधन, डेयरी, ओर्गेनिक किसानी तथा सब्जी उगाने जैसे विषयों पर विशेषज्ञों की राय भी मिलती है। क्लब की अवधारणा का लाभ उठाते हुए किसानों तथा क्लबों को नियमित बैठकें करनी चाहिए। प्रत्येक महीने बचत करनी चाहिए ताकि जरूरत पडने पर एक –दूसरे की मदद हो सके। इसके अलावा उन्हें ऋण अदायगी के उचित व्यवहारों का भी प्रचार करना चाहिए तथा अपने उत्पादों के मूल्यवर्धन पर ध्यान देना चाहिए ताकि वे स्वयं अपनी उत्पादक कंपनी खडी कर सकें।
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Thursday, February 28, 2013
ग्रामीण विकास मंत्रालय को अगले वित्त वर्ष में 80,194 करोड़ रूपए की राशि
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Monday, February 11, 2013
NAC on Enhancing Farm Income for Small Holders
The National Advisory Council meeting was held under the chairmanship of by Smt. Sonia Gandhi last week of Jan 2013. Members who attended the meeting were Ms Anu Aga, Dr. Mihir Shah, Smt.
Aruna Roy, Shri Ashis Mondal, Ms Mirai Chatterjee, Ms Farah Naqvi, Shri Deep Joshi and Dr A.K. Shiva Kumar. Ashis Mondal, Member, NAC and Convener of the NAC Working Group on Enhancing Farm Income for Small Holders through Market Integration presented the draft recommendations of the Working Group to the Council. It was highlighted that building “collectives of smallholders” or farmer producer organizations will address many of the output issues (markets, value addition, post-harvest activities etc.) and input issues (extension, credit, plant protection,insurance, nutrients) which will have positive impact on the productivity and risk mitigation directly. The overall direction of the recommendations is to create a policy environment that enables small and marginal farmers (SMF) to build their collectives and grow as vibrant institutions and play an effective role in the market in more equitable terms.
4. The recommendations were under four broad categories :
a. Institution building initiatives for smallholders
b. Financial services to smallholders’ institutions
c. Marketing of smallholders’ produce, inputs supply, services, etc., and
d. General Recommendation
5. The key recommendations being (a) Grant support to promote FPOs as the
platform for aggregation for market, financing & extension by developing a sub scheme within the existing Centrally Sponsored Schemes (CSS) of Agriculture& Rural Development to promote Farmer Producer Organizations (FPOs) (b) Establish Apex central organization to support FPOs and address the need for promotional role (c ) Creating conducive policy regime for FPOs to access Start up and Investment capital (d) FPOs be included as a recognized category of institution under the Agricultural Produce Marketing Committees Act and be allowed to market members’ produce directly to buyers of their choice, through all platforms (e) Producer companies should continue to be retained as a part of the proposed amended Companies Bill/Act.
Friday, February 8, 2013
स्वास्थ्य सेवा की एक नई पहल -- राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम
स्वास्थ्य सेवा की एक नई पहल -- राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम
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विश्वभर में प्रतिवर्ष लगभग 79 लाख ऐसे बच्चों का जन्म होता है, जो जन्म के समय गंभीरआनुवंशिक अथवा आंशिक तौर पर आनुवंशिक विकृतियों से पीडि़त होते हैं। ऐसे बच्चे जन्म लेने वाले कुल बच्चों का छह प्रतिशत हैं। भारत में प्रतिवर्ष 17 लाख ऐसे बच्चे जन्म लेते हैं, जो जन्मजात विकृतियों का शिकार होते हैं। यदि उनका विशेषतौर पर और समय पर निदान नहीं हो और इसके बावजूद भी वे बच जाते हैं, तो ये बीमारियां उनके लिए जीवन पर्यन्त मानसिक, शारीरिक, श्रवण संबंधी अथवा दृष्टि संबंधी विकलांगता का कारण हो सकती हैंस्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से हाल ही में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की शुरूआत की गई है, जिसके माध्यम से अधिकतम 18 वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के एक पैकेज का प्रावधान किया गया है। यह पहल राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का एक हिस्सा है, जिसे केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री पृथ्वीराज चव्हाण की उपस्थिति में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा महाराष्ट्र के ठाणे जिले के जनजातीय बहुल ब्लॉक पालघर में 06 फरवरी को शुरू किया गया था। विस्तार चरणबद्री केसे देश के सभी जिलों तक किया जाएगा। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम को बाल स्वास्थ्य परीक्षण और शीघ्र निदान सेवा के रूप में भी जाना जाता है, जिसका लक्ष्य बच्चों की मुख्य बीमारियों का शीघ्र पता लगाना और उसका निदान करना है। इन बीमारियों में जन्मजात विकृतियों, बाल रोग, कमियों के लक्षणों और विकलांगताओं सहित विकास संबंधी देरी शामिल हैं। स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अधीन बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण एक जाना-माना कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का विस्तार करके इसमें जन्म से लेकर 18 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों को शामिल किया जा रहा है। इन सुविधाओं का लक्ष्य सरकारी और सरकार द्वारा सहायता प्राप्त स्कूलों में पहली कक्षा से लेकर 12वीं कक्षा तक में पंजीकृत बच्चों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी झुग्गी बस्तियों के जन्म से लेकर छह वर्ष की उम्र के सभी बच्चों को शामिल करना है। शीघ्र परीक्षण और शीघ्र निदान के लिए 30 सामान्य बीमारियों/स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों की पहचान की गई है।
पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग 70 प्रतिशत बच्चों में लौह तत्व की कमी के कारण रक्ताल्पता पाई गई है। इस संदर्भ में पिछले दशक की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग आधे बच्चे (48 प्रतिशत) कुपोषण का शिकार पाए जाते हैं। स्कूल से पहले के वर्षों के दौरान बच्चे रक्ताल्पता, कुपोषण और विकासात्मक विकलांगताओं के प्रतिकूल प्रभावों का निरंतर सामना करते हैं, जो अंतत: स्कूल में उनके निष्पादन को भी प्रभावित करता है।विभिन्न सर्वेक्षणों के द्वारा इस बात का पता चला है कि भारत के स्कूली बच्चों में से 50 से 60 प्रतिशत बच्चे दांतों से संबंधित बीमारियों से पीडि़त होते हैं। स्कूली बच्चों में पांच वर्ष से लेकर नौ वर्षों के उम्र समूह में लगभग प्रति हजार एक दशमलव पांच बच्चे रूमाटिक हृदय रोग से पीडि़त होते हैं। ऐसे बच्चों में 4.75 प्रतिशत अस्थमा जैसी बीमारियां पाई जाती है। वैश्विक तौर पर गरीबी, खराब स्वास्थ्य, कुपोषण और शुरूआती देखरेख की कमी के कारण पांच वर्ष तक के लगभग 20 करोड़ बच्चे अपनी विकासात्मक क्षमता को प्राप्त नहीं कर पाते है। बचपन में शुरूआती आरंभिक देखरेख की कमी होना और पूर्णत: गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या का इस्तेमाल पांच वर्ष से कम उम्र में अल्प विकास के संकेतकों के रूप में किया जा सकता है। ये दोनों संकेतक आपस में संबंधित है,जिनके परिणाम स्वरूप बच्चों का शैक्षिक निष्पादन और विकासात्मक क्षमता प्रभावित होती है मान्यताप्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता(आशा) नवजात शिशु के जन्म के दौरान घरों और संस्थात्मक दौरे के दौरान शिशुओ की जांच घर पर और 6 हफ्ते की सीमा तक की जाती है। आशा को जन्मजात विकारों को दूर करने के लिए आसान उपकरणों से प्रशिक्षित किया जाता है। आशा को जन्मजात विकारों की पहचान करने के लिए एक टूल-किट दी जाती है जिससे वे बीमारियों की पहचान आसानी से कर सकती हैं। 6 सप्ताह से लेकर 6 वर्ष तक के आयु समूह के बच्चों की जांच आंगनवाड़ी केन्द्रों में निर्धारित सचल स्वास्थ्य दलों द्वारा की जाती है। 6 से 18 वर्ष के बच्चों की जांच सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में की जाती है। आंगनवाड़ी केन्द्रों में बच्चों की जांच वर्ष में कम से कम दो बार की जाती है और विद्यालय जाने वाले बच्चों की जांच शुरूआती स्तर पर वर्ष में एक बार की जाती है इस कार्यक्रम के लिए खंड गतिविधियों का केन्द्र होता है। कम से कम तीन निर्धारित सचल स्वास्थ्य दल प्रत्येक खंड में बच्चों की जांच करने के लिए सुनिश्चित किये गये हैं। खंडों की न्यायिक सीमा के अंदर आने वाले गांवों को तीन दलों में वितरित किया जाता है। दलों की संख्या आंगनवाड़ी केन्द्रों की संख्या, केन्द्र तक पहुंचने में आने वाली दिक्कतों और विद्यालयों में बच्चों की संख्या पर निर्भर करता है। सचल स्वास्थ्य दल में चार सदस्य – दो चिकित्सक (आयुष) एक पुरूष और एक महिला, एक नर्स और फार्मेसिस्ट सम्मलित होते हैं। खंड कार्यक्रम प्रबंधक विद्यालयों, आंगनवाड़ी केन्द्रों और स्वास्थ्य अधिकारी से परामर्श के बाद तीनों दलों के कार्यक्रमों को निर्धारित करता है। खंड स्वास्थ्य दलों द्वारा दौरे का पूरा ब्यौरा रखा जाता है। जिला अस्पताल में प्रारंभिक मध्यवर्ती केन्द्र स्थापित किया जाता है। इस केन्द्र का उद्देश्य स्वास्थ्य जांच के दौरान ऐसे बच्चे जिनमें स्वास्थ्य संबंधी कमियां पाई गई हो को, संदर्भ सहायता प्रदान करना है। बाल रोग विशेषज्ञ, स्वास्थ्य अधिकारी, नर्स, पेरामेडिक, सेवा प्रदान करने के लिए दल में सम्मिलित किये जाते हैं। केन्द्र में श्रवण, तंत्रिका संबंधी परीक्षण और व्यवहार संबंधी जांच के लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है। बाल स्वास्थ्य जांच केन्द्रों और प्रारंभिक हस्तक्षेप सेवाओं में सम्मिलित कर्मियों को ध्यानपूर्वक प्रशिक्षण पद्धति से प्रशिक्षित किया जाता है। तकनीकी सहायता संस्थाओं और सहभागी केन्द्रों के सहयोग से मानक प्रशिक्षण पद्धति का विकास किया जाता है। महाराष्ट्र में केईएम अस्पताल, मुम्बई और पुणे तथा अलीयावर जंग राष्ट्रीय श्रवण बाधता संस्थान, मुंबई प्रशिक्षण देने के लिए चुने गए है।स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस कार्यक्रम की प्रभावी योजना और प्रभावी क्रियान्वयन के लिए एक दिशा-निर्देश बनाए है। ये दिशा-निर्देश भारत में बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान और प्रबंधन की प्रक्रिया का विवरण देते है। प्रारंभिक मध्यवर्ती सेवा की यह नई शुरूआत लंबे समय में स्वास्थ्य सेवा ख़र्चों में कटौती कर आर्थिक रूप से लाभ प्रदान करेंगी। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद ने कहा कि ''रोकथाम'' और समर्थित स्वास्थ्य देखभाल राष्ट्रीय मानव संसाधन को प्रभावित कर बीमारियों पर होने वाले खर्च और सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च को भी कम कर सकेंगी। पूर्ण रूप से क्रियान्वित होने पर राष्ट्रीय बाल-स्वास्थ्य कार्यक्रम से देशभर के 27 करोड़ बच्चों को लाभ प्राप्त हो सकेगा।
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Sunday, January 13, 2013
large proportion of poor people live in rural areas.
The number of poor people in India, according to the country’s Eleventh National Development Plan, amounts to more than 300 million. The country has been successful in reducing the proportion of poor people from about 55 per cent in 1973 to about 27 per cent in 2004. But almost one third of the country’s population of more than 1.1 billion continues to live below the poverty line, and a large proportion of poor people live in rural areas. Poverty remains a chronic condition for almost 30 per cent of India’s rural population. The incidence of rural poverty has declined somewhat over the past three decades as a result of rural to urban migration.Poverty is deepest among members of scheduled castes and tribes in the country's rural areas. In 2005 these groups accounted for 80 per cent of poor rural people, although their share in the total rural population is much smaller.On the map of poverty in India, the poorest areas are in parts of Rajasthan, Madhya Pradesh, Uttar Pradesh, Bihar, Jharkhand, Orissa, Chhattisgarh and West Bengal.
Large numbers of India's poorest people live in the country's semi-arid tropical region. In this area shortages of water and recurrent droughts impede the transformation of agriculture that the Green Revolution has achieved elsewhere. There is also a high incidence of poverty in flood-prone areas such as those extending from eastern Uttar Pradesh to the Assam plains, and especially in northern Bihar.
Poverty affects tribal people in forest areas, where loss of entitlement to resources has made them even poorer. In coastal fishing communities people's living conditions are deteriorating because of environmental degradation, stock depletion and vulnerability to natural disasters.A major cause of poverty among India’s rural people, both individuals and communities, is lack of access to productive assets and financial resources. High levels of illiteracy, inadequate health care and extremely limited access to social services are common among poor rural people. Microenterprise development, which could generate income and enable poor people to improve their living conditions, has only recently become a focus of the government.
Poverty affects tribal people in forest areas, where loss of entitlement to resources has made them even poorer. In coastal fishing communities people's living conditions are deteriorating because of environmental degradation, stock depletion and vulnerability to natural disasters.A major cause of poverty among India’s rural people, both individuals and communities, is lack of access to productive assets and financial resources. High levels of illiteracy, inadequate health care and extremely limited access to social services are common among poor rural people. Microenterprise development, which could generate income and enable poor people to improve their living conditions, has only recently become a focus of the government.
Women in general are the most disadvantaged people in Indian society, though their status varies significantly according to their social and ethnic backgrounds. Women are particularly vulnerable to the spread of HIV/AIDS from urban to rural areas. In 2005 an estimated 5.7 million men, women and children in India were living with HIV/AIDS. Most of them are in the 15-49 age group and almost 40 per cent of them, or 2.4 million in 2008, are women (National AIDS Control Organisation).
Thursday, January 3, 2013
Marketing with the Help of Traditional Media in Rural India
The Rural Focus
The strategy taken by Hindustan Unilever Ltd. (HUL) to enter the rural sector, which has remained insulated so far, is a good one, says Atmanand. In states like Maharashtra, Gujarat, Andhra Pradesh, Delhi and Haryana, the company is expanding steadily by expanding their network of dealers and making themselves household names.Of course, replicating the HUL model may be difficult for a startup, but it does serve as a valuable lesson in marketing: Dont put all your eggs in one basket. The entire gamut of white and brown goods has found a place in the rural market, driving several industries to actively explore it.In the current scenario, companies should change their strategies for marketing. For market sustainability, we have to look at the rural markets. This would include products that have been especially designed for these markets at prices that will suit the sector, says Atmanand.
Tailor-made Products for Rural India
The company should provide rural folk with products and services that would meet their requirements. Take Cavin Care, for instance, which launched its shampoo in sachets. Also consider Britannia, which packaged its Tiger brand biscuits at a low price tag. Such companies obtained an understanding of the rural customers needs and provided them with the desired products.
Atmanands emphasis is clearly on parameters that change the dynamics of marketing a product. Rural markets offer a great potential to help India Inc. (which has reached the plateau of its business curve in urban India) bank on volume-driven growth. With a larger market to play with, virtually any marketing initiative can be cost effective.
Aspects that are seldom ignored are also key drivers in marketing. Some do not cost a penny, and the benefits are huge. Consumer satisfaction is very important. Gone are the days when products were sold solely on their brand name. Today, people want value for their money; they want the product to meet their expectations and utility. The company should focus more on quality and the consumer satisfaction index, says Atmanand. A consumer with a high level of satisfaction and a good image of your pro-duct is likely to be your best brand ambassador and proponent of your product.
Understanding the preferences of the rural masses is crucial, and your company manager could be the answer. Companies should hire managers who are familiar with rural India and are in sync with the demands and preferences of people in these regions. While management graduates are conversant with strategies applicable for the western countries, their mindset and training may not allow them to understand the requirements of rural consumers.
Marketing with the Help of Traditional Media
Traditional media would serve as a great driver to generate awareness among rural consumers. Skits, magic shows and educational drives by NGOs are among the preferred traditional media that marketers can use to good effect. These engage the interest of rural consumers and go a long way in establishing your brand in their minds.Things are certainly changing. Consumer financing schemes, insurance schemes and promotion associated with delivering products to consumers will be preferred. Says Atmanand, Understanding the needs and desires of the Indian consumer, price competitiveness, innovation and R&D form the key to unlocking the potential of this vast market.
The strategy taken by Hindustan Unilever Ltd. (HUL) to enter the rural sector, which has remained insulated so far, is a good one, says Atmanand. In states like Maharashtra, Gujarat, Andhra Pradesh, Delhi and Haryana, the company is expanding steadily by expanding their network of dealers and making themselves household names.Of course, replicating the HUL model may be difficult for a startup, but it does serve as a valuable lesson in marketing: Dont put all your eggs in one basket. The entire gamut of white and brown goods has found a place in the rural market, driving several industries to actively explore it.In the current scenario, companies should change their strategies for marketing. For market sustainability, we have to look at the rural markets. This would include products that have been especially designed for these markets at prices that will suit the sector, says Atmanand.
Tailor-made Products for Rural India
The company should provide rural folk with products and services that would meet their requirements. Take Cavin Care, for instance, which launched its shampoo in sachets. Also consider Britannia, which packaged its Tiger brand biscuits at a low price tag. Such companies obtained an understanding of the rural customers needs and provided them with the desired products.
Atmanands emphasis is clearly on parameters that change the dynamics of marketing a product. Rural markets offer a great potential to help India Inc. (which has reached the plateau of its business curve in urban India) bank on volume-driven growth. With a larger market to play with, virtually any marketing initiative can be cost effective.
Aspects that are seldom ignored are also key drivers in marketing. Some do not cost a penny, and the benefits are huge. Consumer satisfaction is very important. Gone are the days when products were sold solely on their brand name. Today, people want value for their money; they want the product to meet their expectations and utility. The company should focus more on quality and the consumer satisfaction index, says Atmanand. A consumer with a high level of satisfaction and a good image of your pro-duct is likely to be your best brand ambassador and proponent of your product.
Understanding the preferences of the rural masses is crucial, and your company manager could be the answer. Companies should hire managers who are familiar with rural India and are in sync with the demands and preferences of people in these regions. While management graduates are conversant with strategies applicable for the western countries, their mindset and training may not allow them to understand the requirements of rural consumers.
Marketing with the Help of Traditional Media
Traditional media would serve as a great driver to generate awareness among rural consumers. Skits, magic shows and educational drives by NGOs are among the preferred traditional media that marketers can use to good effect. These engage the interest of rural consumers and go a long way in establishing your brand in their minds.Things are certainly changing. Consumer financing schemes, insurance schemes and promotion associated with delivering products to consumers will be preferred. Says Atmanand, Understanding the needs and desires of the Indian consumer, price competitiveness, innovation and R&D form the key to unlocking the potential of this vast market.
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